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मधु पल ....

विरह के मारे ये लोचन

नीर कहाँ ले जाएँ
पी को पीर सुनाएँ कैसे
और स्मृति से बतियाएँ
वो स्पर्श एकांत के कैसे
अंग विस्मृत कर जाएँ
कालजयी पल अधर मिलन के
हृदय विचलित कर जाएँ
वायु वेग से सूखे पत्ते
मौन भंग कर जाएँ
बाट जोहते पगले नैना
बरबस भर-भर आएं
साँझ ढले सब पंख पखेरू
अपने नीड़ आ जाएँ

घूंघट में यूँ नैनों को पी
बार बार तरसाएँ 
अकंपित उस लौ दीप को
स्वप्न अर्पित हो जाएँ
मन तरसे जब घन बरसें
क्षण बीते शूल बन जाएँ

घुल के काजल में वो मधु पल
इक प्रेम कथा लिख जाएँ

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on November 3, 2014 at 12:25pm

आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 3, 2014 at 10:05am

घुल के काजल में वो मधु पल 
इक प्रेम कथा लिख जाएँ--------बहुत सुंदर भाव रचना | हार्दिक बधाई श्री सुशिल सरना जी 

Comment by Sushil Sarna on November 2, 2014 at 12:40pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक  प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 1, 2014 at 8:23pm

आदरणीय सुनील सरन भाई , बढिया विरह गीत की रचना की है , बहुत सुन्दर ! बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Sushil Sarna on November 1, 2014 at 12:29pm

आदरणीय  जितेन्द्र 'गीत   रचना पर आपकी स्नेह बरखा का हार्दिक आभार। 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 1, 2014 at 10:10am

मिलन पश्चात , विरह में याद बेहद सुंदर पलों को एकत्रित करती रचना. बहुत-बहुत बधाई आदरणीय शुशील जी

Comment by Sushil Sarna on October 31, 2014 at 11:39am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव  रचना पर आपकी स्नेहिल काव्यात्मक प्रतिक्रिया ने रचना को जो मान बढ़ाया है उसके लिए मैं तहे दिल से आपका आभारी हूँ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 30, 2014 at 5:23pm

 मधु पल की याद  संजोये     मधु पल की याद दिलाती

काजल में  घुलकर  मिल   पानी एक  कथा लिख जाती

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