मधु पल ....
विरह के मारे ये लोचन
नीर कहाँ ले जाएँ
पी को पीर सुनाएँ कैसे
और स्मृति से बतियाएँ
वो स्पर्श एकांत के कैसे
अंग विस्मृत कर जाएँ
कालजयी पल अधर मिलन के
हृदय विचलित कर जाएँ
वायु वेग से सूखे पत्ते
मौन भंग कर जाएँ
बाट जोहते पगले नैना
बरबस भर-भर आएं
साँझ ढले सब पंख पखेरू
अपने नीड़ आ जाएँ
घूंघट में यूँ नैनों को पी
बार बार तरसाएँ
अकंपित उस लौ दीप को
स्वप्न अर्पित हो जाएँ
मन तरसे जब घन बरसें
क्षण बीते शूल बन जाएँ
घुल के काजल में वो मधु पल
इक प्रेम कथा लिख जाएँ
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
घुल के काजल में वो मधु पल
इक प्रेम कथा लिख जाएँ--------बहुत सुंदर भाव रचना | हार्दिक बधाई श्री सुशिल सरना जी
आदरणीय गिरिराज भंडारी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुनील सरन भाई , बढिया विरह गीत की रचना की है , बहुत सुन्दर ! बधाइयाँ स्वीकार करें ।
आदरणीय जितेन्द्र 'गीत रचना पर आपकी स्नेह बरखा का हार्दिक आभार।
मिलन पश्चात , विरह में याद बेहद सुंदर पलों को एकत्रित करती रचना. बहुत-बहुत बधाई आदरणीय शुशील जी
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव रचना पर आपकी स्नेहिल काव्यात्मक प्रतिक्रिया ने रचना को जो मान बढ़ाया है उसके लिए मैं तहे दिल से आपका आभारी हूँ।
मधु पल की याद संजोये मधु पल की याद दिलाती
काजल में घुलकर मिल पानी एक कथा लिख जाती
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