तन्हा प्याला ....
रजकण हूँ मैं प्रणय पंथ का
स्वप्न लोक का बंजारा
हार के भी वो जीती मुझसे
मैं जीत के हरदम ही हारा
नयन सिंधु में छवि है उसकी
वो तृषित मन की मधुशाला
प्रणयपाश एकांत पलों का
मन में जीवित ज्यूँ हाला
गीत कंठ के सूने उस बिन
रैन चांदनी बनी ज्वाला
नयन देहरी पर सजूँ मैं उसकी
हृदय में है ये अभिलाषा
अपने रक्तभ अधरों की मधु बूँद से
जो भर दे मेरा तन्हा प्याला
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Shyam Narain Verma जी रचना के भावों पर आपकी स्नेह का हार्दिक आभार।
आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी रचना के भावों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Er. Ganesh Jee "Bagi" जी रचना के भावों पर आपकी आत्मीय स्वीकृति का हार्दिक आभार।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ... सादर बधाई |
हार और जीत से परे एक अलौकिक दुनिया की शैर करा गयी यह कविता, आदरणीय सरना साहब, बहुत ही प्यारी रचना बन पड़ी है, बहुत बहुत बधाई इस कृति के लिए।
बहुत खूब, सर जी. बहुत ही सुंदर, हार्दिक बधाई स्वीकारें
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय योगराज प्रभाक जी रचना पर आपकी ऊर्जावान प्रशंसा का हार्दिक आभार।
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