क़सम ले लो उन्हें फिर भी न मैं बुरा कहता
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वो मेरे दिल में न होते तो मैं ज़ुदा कहता
क़सम ले लो उन्हें फिर भी न मैं बुरा कहता
वो जिसकी ताब ने ज़र्रे को आसमान किया ( ओ बी ओ को समर्पित )
उसे न कहता तो फिर किसको मैं ख़ुदा कहता
रहम दिली पे मुझे खूब है यकीं उनकी
करूँ क्या ? वक़्त मिला ही न मुद्दआ कहता
तवील है तो सही मेरी दासतां , मैं उसे
कभी कभी मिले होते , ज़रा ज़रा कहता
हरेक बात मैं कहता उन्हें, मगर दिल के
वो पूछते कभी अरमाँ, छुपा छुपा कहता
नज़र वो आयें, अगर मेरे आस्ताने में
तुम्हीं कहो ? कि इसे क्या मैं हादसा कहता
अभी तो ख़ुद से मुलाक़ात मेरी बाक़ी है
जवाब है नहीं हासिल मुझे , तो क्या कहता
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
वो जिसकी ताब ने ज़र्रे को आसमान किया ( ओ बी ओ को समर्पित )
उसे न कहता तो फिर किसको मैं ख़ुदा कहता
आदरणीय गिरिराज साहब खुबसूरत ग़ज़ल और लासानी अशहार हुये हैं |सादर अभिनन्दन
वाह ! सभी अशआर खूबसूरत हुए हैं, अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, बधाई आदरणीय भंडारी भाई साहब।
बहुत खूब , गजल पर आपको दिल से बधाई |
ओ बी ओ को समत्पित i बहुत खूब ! मित्र ओ बी ओ तो आप जैसे गुणी को पाकर स्वयं धन्य है i बहुत बेहतरीन गजल i सादर i
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