मुहब्बत का तराना तो बहुत गाया हुआ है
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1222 1222 1222 122
न आये होश अब यारों नशा छाया हुआ है
सँभल ऐ बज़्म दिल अब वज़्द में आया हुआ है
ज़रा राहत की कुछ सांसें तो लेलूँ मैं ,कि सदियों
बबूलों को मनाया हूँ तो अब साया हुआ है
हथौड़ा एक तुम भी मार दो लोहा गरम पर
यहाँ मज़हब को ले के खून गरमाया हुआ है
अँधेरा बांट के भी रोशनी का मुंतज़िम , वो
तुम्हें किसने कहा, ग़मगीन, शर्माया हुआ है ?
सुना है आइनों की बस्ती में फिर कोई पत्थर
वहाँ की तेवरी से खूब घबराया हुआ है
कि अब सरकश तराने का कोई आगाज़ भी हो
मुहब्बत का तराना तो बहुत गाया हुआ है
मुझे बज़्मे तरब की रोशनी में मत घसीटो
मेरे अन्दर का सन्नाटा मुझे भाया हुआ है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मुकेश भाई , सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका दिली आभार ।
bahut khoob mitra
आदरणीय हरि प्रकाश भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका दिली शुक्रिया ।
आ. गुमनाम भाई , आपका आभार ।
आदरणीय सुशील सरना भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
आदरणीय विजय भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका दिली शुक्रिया ।
आदरणीया राजेश जी , गज़ल की सराहना और सलाह के लिये आपका हार्दिक आभार ।
मेरे अन्दर का सन्नाटा मुझे भाया हुआ है...बहुत खूब , हार्दिक बधाई आदरणीय श्री गिरिराज भंडारी जी ।
बहुत खूब................
वाह आदरणीय गिरिराज जी बहुत ही सुंदर ग़ज़ल जिसका हर शे'र अपनी महक से ग़ज़ल में छाया हुआ है ....
मुझे बज़्मे तरब की रोशनी में मत घसीटो
मेरे अन्दर का सन्नाटा मुझे भाया हुआ है … मज़ा आ गया सर … इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय।
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