“बेटा, 20 हज़ार में क्या होगा ? कुछ और कोशिश कर, आखिर तेरी दीदी की शादी है !“
“सुना है भईया ने 5 हज़ार देकर हाथ खड़े कर लिए हैं | वो उनकी बहन नहीं है क्या ?“
वो बढ़ते बोझ और थकान से टूटने लगा था |
“बेटा ! लंगड़े और बिदकने वाले घोड़ो को रेस में नहीं रखा जाता |“
पक्षपात माँ की बेबसी थी |
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सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
bahut hi behtrin laghukatha likhi hai somesh ji
बेहतरीन ! लघु होकर भी भाव सम्प्रेष्ण में पूर्ण सक्षम बधाई आपको |
स्नेह व् आशीष के लिए सभी आदरणीय गुरू -गण का आभार |
अति सुन्दर लघु कथा। बधाई। |
बढ़िया i बेहतरीन i प्रस्तुति भी शानदार i
“बेटा ! लंगड़े और बिदकने वाले घोड़ो को रेस में नहीं रखा जाता |“
पक्षपात माँ की बेबसी थी |
शिल्प और कथ्य की दृष्टि से यह लघुकथा बहुत ही चुस्त और सारगर्भित हुई है भाई सोमेश कुमार जी।
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