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आँख का आँसू हॅसेगा - (ग़ज़ल ) -लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2122    2122    2122    212

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चाँद  देता  है  दिलासा  कह  पुरानी  उक्तियाँ
पतझड़ों  में  गीत  उम्मीदों के गाती पत्तियाँ /1/

कह रही हैं एक दिन जब गुल खिलेंगे बाग में
फिर उदासी से  निकल बाहर हॅसेंगी बस्तियाँ /2/

स्वप्न बैठेंगे यहीं फिर गुनगुनी सी धूप में
बीच रिश्तों  के  रहेंगी  तब न ऐसी सर्दियाँ /3/

सिर  रखेगा  फिर  से  यारो सूने दामन में कोई  
आँख का आँसू हॅसेगा छोड़ कर फिर सिसकियाँ /4/

डस  रहा  है  गर  अकेलापन  बुढ़ापे  को बहुत
झट निकालो गठरियों से बचपनों की मस्तियाँ /5/

जिंदगी  की  पाठशाला  में  उकेरो  सुख  नये
पोंछ  डालो  आज दुख से जो भरी है तख्तियाँ /6/


रचना-25 अक्तुबर 2014
मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’    

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Comment

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Comment by vijay nikore on November 25, 2014 at 10:49am

गज़ल अच्छी लगी। आपको हार्दिक बधाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 25, 2014 at 10:48am

आदरणीय भाई सोमेश जी गजल प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 25, 2014 at 10:47am

आदरणीय भाई गोपाल किसन जी गजल पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 25, 2014 at 10:45am

आ० डॉ० भाई विजय शंकर जी,रचना पर आपका अनुमोदन पाकर हर्षित हूँ l मेरा लिखना सार्थक हुआ l आपका दिल से बहुत -बहुत आभार l   

Comment by maharshi tripathi on November 24, 2014 at 10:25pm

जिंदगी  की  पाठशाला  में  उकेरो  सुख  नये
पोंछ  डालो  आज दुख से जो भरी है तख्तियाँ

जिंदगी जीने के मंत्र|

बधाई स्वीकार करें ,,,,आदरणीय धामी जी |

Comment by somesh kumar on November 24, 2014 at 8:51pm

बेहद सुंदर गज़ल

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 24, 2014 at 7:25pm

धामी जी आप तो अच्छा लिखते ही है i अति मनोहारी i

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 24, 2014 at 5:33pm
" पतझड़ों में गीत उम्मीदों के गाती पत्तियाँ "
वाह ! उम्मीद हो तो ऐसी ही हो।
" आँख का आँसू हॅसेगा छोड़ कर फिर सिसकियाँ "
वाह , बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति। पूरी ग़ज़ल बहुत सुन्दर भावों से परपूर्ण है।
बहुत बहुत बधाई आदरणीय लक्षमण धामी जी।

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