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चाँद देता है दिलासा कह पुरानी उक्तियाँ
पतझड़ों में गीत उम्मीदों के गाती पत्तियाँ /1/
कह रही हैं एक दिन जब गुल खिलेंगे बाग में
फिर उदासी से निकल बाहर हॅसेंगी बस्तियाँ /2/
स्वप्न बैठेंगे यहीं फिर गुनगुनी सी धूप में
बीच रिश्तों के रहेंगी तब न ऐसी सर्दियाँ /3/
सिर रखेगा फिर से यारो सूने दामन में कोई
आँख का आँसू हॅसेगा छोड़ कर फिर सिसकियाँ /4/
डस रहा है गर अकेलापन बुढ़ापे को बहुत
झट निकालो गठरियों से बचपनों की मस्तियाँ /5/
जिंदगी की पाठशाला में उकेरो सुख नये
पोंछ डालो आज दुख से जो भरी है तख्तियाँ /6/
रचना-25 अक्तुबर 2014
मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
गज़ल अच्छी लगी। आपको हार्दिक बधाई।
आदरणीय भाई सोमेश जी गजल प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आदरणीय भाई गोपाल किसन जी गजल पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ० डॉ० भाई विजय शंकर जी,रचना पर आपका अनुमोदन पाकर हर्षित हूँ l मेरा लिखना सार्थक हुआ l आपका दिल से बहुत -बहुत आभार l
जिंदगी की पाठशाला में उकेरो सुख नये
पोंछ डालो आज दुख से जो भरी है तख्तियाँ
जिंदगी जीने के मंत्र|
बधाई स्वीकार करें ,,,,आदरणीय धामी जी |
बेहद सुंदर गज़ल
धामी जी आप तो अच्छा लिखते ही है i अति मनोहारी i
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