2122 2122 2122 212
************************
अजनवी सी सभ्यता के बीज बोकर रह गए
सोचकर अपना, किसी का बोझ ढोकर रह गए
***
वक्त सोने के जगा करते हैं देखो यार हम
जागने के वक्त लेकिन रोज सोकर रह गए
***
लोरियाँ माँ की, कहानी नानियों की, साथ ही
चाँद तारे , फूल, तितली लफ़्ज होकर रह गए
***
कसमसाकर दिल जो खोले है पुरानी पोटली
याद कर बचपन को यारो नैन रोकर रह गए
***
मानता हूँ , है हसोड़ों की जरूरत, दुख मगर
आज नायक भी यहाँ पर हो के जोकर रह गए
***
राजनेता खा रहे बादाम-विश्की मुफ्त में
मोल को जनता के हिस्से सिर्फ चोकर रह गए
***
पीठ पीछे तो गरजते खूब तुम ‘नापाक वो’
सामना होते ही लेकिन पाँव धोकर रह गए
***
रचना - 15 दिसम्बर 14
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणिया भाई खुर्शीद जी , ग़ज़ल पर बधाई प्रेषित करने के लिए आभार .जहाँ तक नये प्रयोग की बात है आप सभी का स्नेह और प्रेरणा कुच्छ ना कुछ नया सोचने को प्रेरित करती है . ओ बी ओ पर सुधार की पूरी गुंजाईस रहती है इसलिए भी नये प्रयोग करते समय संकोच नहीं रहता . स्नेह बनाएँ रखें .
आदरणिया भाई गुमनाम जी , ग़ज़ल पर बधाई प्रेषित करने के लिए आभार .
आदरणिया भाई हरी प्रकाश ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद.
आदरणिया भाई मिथिलेश जी , ग़ज़ल पर स्नेहपूरित बधाई प्रेषित करने के लिए आभार .
आदरणिया भाई गोपाल नारायण आपका अनुमोदन पाकर लेखन सफल हुआ हार्दिक धन्यवाद.
आदरणिया भाई सोमेश जी , ग़ज़ल पर बधाई प्रेषित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद .
राजनेता खा रहे बादाम-विश्की मुफ्त में
मोल को जनता के हिस्से सिर्फ चोकर रह गए
आदरणीय मुसाफ़िर साहब कहन और काफ़िये के हिसाब से भी बिलकुल नया प्रयोग है, बधाई |सादर अभिनन्दन |
आदरणिया भाई गिरिराज जी , ग़ज़ल की प्रसंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .
आदरणिया भाई सुशील सरना जी आपको ग़ज़ल अच्च्ची लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है हार्दिक धन्यवाद.l
वाह सर कमाल ग़ज़ल हुई हर शेर लाजवाब
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online