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इस नगर में तो मुश्किल हैं तनहाइयाँ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122    1221     2212

************************
चाँद  आशिक  तो  सूरज दीवाना हुआ
कम मगर क्यों खुशी का खजाना हुआ

****
बोलने   जब   लगी   रात  खामोशियाँ
अश्क अम्बर को मुश्किल बहाना हुआ

****
मिल  भॅवर से स्वयं किश्तियाँ तोड़ दी
बीच  मझधार  में   यूँ   नहाना  हुआ

****
जब  पिघलने  लगे  ठूँठ  बरसात में
घाव  अपना  भी  ताजा  पुराना हुआ

****
देख  खुशियाँ  किसी की न आँसू बहे
दर्द  अपना  भी  शायद  सयाना हुआ

****
जब  नजर  जाति  धर्मों  की  टेड़ी  हुई
प्यार  का  सच भी  जैसे  फसाना हुआ

****
छोड़ रश्मों की खातिर  जिसे  कल गए
राह उसकी  ही  फिर  आज आना हुआ

****
इस नगर में तो मुश्किल हैं तनहाइयाँ
छाग-ए-दामन  सा आँसू छिपाना हुआ

****
ठोकरें  तो   बहुत   दी  हमें   राह   ने
दर्द  बिन  घाव  ही  पर  कमाना हुआ

****
 ( रचना - 25 दिसम्बर 14 )
मौलिक और अप्रकाशित
 ( प्रबुद्धजनों से कमजोर असआरों पर सुझाव आमंत्रित हैं )

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 15, 2015 at 11:27am

आ० भाई मिथिलेश जी , समर्थन के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 15, 2015 at 11:25am

आ० भाई खुर्शीद जी , ग़ज़ल पर प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद . मैंने यहाँ पर ठूंठ का पिघलना को अत्यधिक अनुकूल अवसर पर कठोर हृदयी के भी अपने दर्द बयां करने के सन्दर्भ में किया है . इसके और क्या क्या मायने लगाये जा सकते है आदि अन्यथा न लें तो ज्ञानवर्धन कराये .आभारी रहूंगा . शुभ शुभ .....

Comment by khursheed khairadi on January 14, 2015 at 11:46am

मिल  भॅवर से स्वयं किश्तियाँ तोड़ दी
बीच  मझधार  में   यूँ   नहाना  हुआ

****
जब  पिघलने  लगे  ठूँठ  बरसात में 
घाव  अपना  भी  ताजा  पुराना हुआ

आदरणीय लक्ष्मण सर उम्दा ग़ज़ल हुई है |'ठूंठ का पिघलना अछूता बिंब है , जिसके अक्श में कई मानी हैं | हार्दिक बधाई |सादर अभिनन्दन 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 14, 2015 at 11:34am
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने बिलकुल सही कहा ग़ज़ल सीखने के इससे बेहतर मंच और कहाँ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2015 at 11:14am

आ० प्रतिभा बहन , ग़ज़ल की प्रशंशा के लिए हार्दिक धन्यवाद . जहाँ तक ग़ज़ल लिखने का सवाल है बेहिचक होकर लिखो .इस मंच पर आपको अपनी कमिया दूर करने में सभी प्रबुद्ध जानो का भरपूर सहयोग मिलेगा . प्रयास  से ही सब कुछ संभव होता है . नियमों के लिए  इसी मंच पर गजल की कक्षा में शामिल होइए . नियम बहुत ही आसान हैं . बहुत काम समय में आप अच्छा लिखने लगेंगी .हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2015 at 11:05am

आ० भाई उमेश जी , ग़ज़ल की प्रशंशा के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2015 at 11:03am

आ० भाई गोपाल नारायण जी , यह रंग तो आप सब के स्नेहाशीष का ही है .मैं तो सिर्फ कोरा कागज हूँ . आप सब का स्नेह जिस रंग की ओर प्रेरित करता है उसी रंग में रंग जाता हूँ . स्नेहाशीष के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by umesh katara on January 14, 2015 at 8:06am

जब  पिघलने  लगे  ठूँठ  बरसात में 
घाव  अपना  भी  ताजा  पुराना हुआ
------वाहहहहहहहहह

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 13, 2015 at 5:20pm

भाई धामी जी

बड़े ही रंग में आप नजर आये i बेहतरीन अशआर i  आपको बधाई i

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 13, 2015 at 11:56am

आ0 भाई सोमेश जी उत्साहवर्धन लिए हार्दिक धन्यवाद .l

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