आ चल बुने राष्ट्रीय स्वेटर
सहिष्णुता की ऊन का गोला
सलाइयाँ सद्व्यवहार की
रंग रंग के डालें बूटे
मनुसाई कतारें प्यार की
करें बुनाई सब मिलजुल कर
आ चल बुने राष्ट्रीय स्वेटर
अब सर्दी का लगा महीना
देश मेरा ये थर-थर काँपे
एक-एक मिल भरें उष्णता
शाल बना कांधों पर ढापें
धूप-धूप गूँथे प्रभाकर
आ चल बुने राष्ट्रीय स्वेटर
हिंदू मुस्लिम सिक्ख इसाई
साथ-साथ मिल करें सिलाई
अनुशासन का मिश्रित धागा
लोकतंत्र की करें कढाई
ऐसे बने विचक्षण बुनकर
आ चल बुने राष्ट्रीय स्वेटर
ग्रंथि पड़े तो मिलकर खोलें
हो अस्वच्छ तो मिलकर धोलें
ज्ञान समृद्धि के फंदों में
स्वच्छता के अंकुर बोलें
स्वास्थ्य तभी बनेगा बेहतर
आ चल बुनें राष्ट्रीय स्वेटर
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(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
प्रिय छाया शुक्ला जी,आपको ये स्वेटर पसंद आया तो समझो मेरा लेखन सार्थक हो गया ,इस प्यारी प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार |
क्या बात है बहन राजेश जी
इस स्वेटर का तो बस इन्तजार ही था
सहिष्णुता की ऊन का गोला
सलाइयाँ सद्व्यवहार की
रंग रंग के डालें बूटे
मनुसाई कतारें प्यार की
करें बुनाई सब मिलजुल कर
आ चल बुने राष्ट्रीय स्वेटर
शुरुआत ही इतनी प्यारी है कि पाठक वाचन को विवश हो उठेगा |
बधाई बहन सुंदर नवगीत के लिए |
लक्ष्मण भैय्या आपको ये नवगीत रुचिकर लगा मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ |भैया ये शब्द विचक्षण ही है जिसका अर्थ है निपुण ,सक्षम ,समर्थ .
आदरणीय बहन राजेश जी एक बहुत ही सार्थक नवगीत हुआ है । कोटि कोटि बधाई । एक अनुरोध है तीसरे खंड की पांचवी पंक्ति में विचक्षण शब्द कही विलक्षण तो नहीं है स्पष्ट करें । शेष सादर.....
आ० विजय निकोर जी,आपको नवगीत पसंद आया दिल से आभार आपका |
अति सुन्दर नवगीत के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीया राजेश जी।
आ० उमेश कटारा जी ,आपकी टिपण्णी से अभिभूत हूँ हार्दिक धन्यवाद
आ० गिरिराज जी,आपका बहुत- बहुत आभार .आपको नवगीत पसंद आया मेरा लिखना सार्थक हुआ |
आ० गणेश बागी जी,प्रस्तुति आपकी प्रतिक्रिया पाकर धन्य हुई दिल से आभारी हूँ
आ० डॉ० गोपाल नारायण जी,आपकी प्रतिक्रिया से मेरी लेखनी को नव ऊर्जा प्राप्त होती है रचना पर आपका अनुमोदन पाकर मुग्ध हूँ ,दिल से शत- शत आभार ,सादर
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