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नहीं होता तो क्या होता अगर होगा तो क्या होगा
कभी तुमने बचाया क्या अभी खोया तो क्या होगा
जमाने को सिखाया है हुनर तुमने यही अब तक
वफ़ा करके कभी खुद को मिले धोखा तो क्या होगा
किसी की जिन्दगी में तुम उजाला कर नहीं सकते
अगर खुर्शीद भी दिन में न अब जागा तो क्या होगा
चले हो आबशारों को जलाने आग से अपनी
समंदर ने तुम्हारा रास्ता रोका तो क्या होगा
लिए वो हाथ में पत्थर कभी फेंका था जो तुमने
तुम्हारा आईना दिल का अगर टूटा तो क्या होगा
बरी हो तुम भले ही आज अपने इन गुनाहों से
अदालत से ख़ुदा की फेंसला आया तो क्या होगा
बहुत बर्दाश्त करता है न कहता कुछ जुबाँ से वो
शजर की हाय ही काफ़ी अगर बोला तो क्या होगा
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
मिथिलेश जी सच कहा ये बड़ी मक़्बूल बह्र है मेरी पसंदीदा भी है|ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ आप जैसे ग़ज़लकार को इस ग़ज़ल ने पाठक के रूप में पाया तथा अशआर अपनी बात स्पष्ट रख सके, मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ
नहीं होता तो क्या होता अगर होगा तो क्या होगा
कभी तुमने बचाया क्या अभी खोया तो क्या होगा
क्या बात है पढ़कर झूम गया हूँ ... बह्र-ए-हज़ज बड़ी ही मक़्बूल बहर है इस बह्र में काफ़ी ग़ज़ल भी कही गई है, मैंने इस बहर में बहुत लिखा है पर आपका ये कलाम ...क्या कहूँ बस झूम गया हूँ ..... इसे गुनगुनाने में वही आनंद आ रहा है जो चचा ग़ालिब की ग़ज़ल को जगजीत सिंह जी की आवाज़ में सुनते हुए आता है ... बस कमाल ... बधाई क्या दूं ...नमन करता हूँ आपको
प्रिय वन्दना,ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ ,मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ शुभकामनायें.
किसी की जिन्दगी में तुम उजाला कर नहीं सकते
अगर खुर्शीद भी दिन में न अब जागा तो क्या होगा
चले हो आबशारों को जलाने आग से अपनी
समंदर ने तुम्हारा रास्ता रोका तो क्या होगा
बहुत बर्दाश्त करता है न कहता कुछ जुबाँ से वो
शजर की हाय ही काफ़ी अगर बोला तो क्या होगा
वाह कमाल की ग़ज़ल आदरणीया
तहे दिल से आभार आ० मुकेश श्रीवास्तव जी |
baut umdaa mitra -
हरि प्रकाश जी ,ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ ,तहे दिल से आभार आपको.
बरी हो तुम भले ही आज अपने इन गुनाहों से
अदालत से ख़ुदा की फेंसला आया तो क्या होगा....बहुत सुन्दर रचना ,आपको हार्दिक बधाई
बहुत- बहुत शुक्रिया आ० गुमनाम पिथौरागढ़ी जी
वाह क्या बात है ,,,
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