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खुदा को दो नयी मज़ार बनानी थी

छुपा कर दिल में रक्खी थी

बचपन में बनी प्रेम कहानी थी

 

तुम्हारे जिस पर नाम लिखे थे

दीवार वो, बहुत पुरानी थी

 

पगली ,इश्क में तेरे दीवानी थी

तूने फ़ौज मैं जाने की ठानी थी    

 

तुझे सेहरा बाँध के आना था

निकाह की रस्म निभानी थी

 

कुछ अजब तौर की कहानी थी

तेरी लाश तिरगे में आनी थी

 

उठ गए थे खुनी खंज़र

जान तो जानी ही थी

 

अरे आसमां से तो पूछ लेता

खुदा गर तुझे ,बिजली गिरानी थी

 

तू चाहता तो बक्श देता, ए खुदा  

पर तुझे, दो नयी मज़ार बनानी थी !!

 

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on December 2, 2014 at 11:07pm

आपका बहुत - बहुत धन्यवाद आदरणीय श्री  गणेश  जी"बागी "जी  !"आपकी प्रेरणा और मार्गदर्शन से ,प्रयास करता रहूँगा ! हार्दिक आभार !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 2, 2014 at 10:55pm

१२२२ / १२२२
छुपा कर दिल/ में रक्खी थी
वो बचपन की/ कहानी थी .

तनिक संयत होकर प्रयास करते रहें।

Comment by ajay sharma on December 2, 2014 at 10:49pm

bahut hi khoob ....gambhir rachna ke liye .....badhayi

Comment by Hari Prakash Dubey on December 2, 2014 at 8:40pm

आपका हार्दिक आभार महर्षि त्रिपाठी  जी !

Comment by maharshi tripathi on December 2, 2014 at 8:05pm

बधाई स्वीकारें आ.

Comment by Hari Prakash Dubey on December 2, 2014 at 1:52pm

बहुत बहुत धन्यवाद् आपका पाठक जी !

Comment by ram shiromani pathak on December 2, 2014 at 1:40pm

बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है आदरणीय //हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 2, 2014 at 12:29pm

"रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी !"आपने बिलकुल सही कहा ,प्रयास तो वही था पर ग़ज़ल की विधा का ज्ञान न होने के कारण "तरही मिसरे पर ग़ज़ल" में भाग नहीं ले पाया  ,आपकी प्रेरणा और मार्गदर्शन से ,प्रयास करता रहूँगा ! हार्दिक आभार !

Comment by Hari Prakash Dubey on December 2, 2014 at 12:20pm

रचना पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय डॉ ० विजय शंकर जी !

Comment by Hari Prakash Dubey on December 2, 2014 at 12:15pm

आप रचना को समय देते हैं ,निष्कर्ष निकालने का प्रयास करतें है , हार्दिक आभार सोमेश भाई ! पुनः धन्यवाद !"

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