For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घर बदला, बदला जहां, बदले बदले लोग ।

अर्थ बदलते देखिए, क्या जोगी क्या जोग ।।

 

पलकों से उतरी जरा, धीरे धीरे रात ।

शामों की दहलीज पे, साए करते बात ।।

 

धुंधली धुधली हो गई, यादों की सौगात।

अफरातफरी वक़्त की, ये कैसे हालात।।

 

आवाजे होती गई, सब की जब खामोश।

शहर बिचारा क्यों मढ़े, सन्नाटे को दोष।।

 

ढलती शामों में किया, पीपल ने संतोष।

बिछड़ गई परछाइयाँ, सूरज भी खामोश ।।

 

हमने जब से ले लिया, इश्क़ हकीकी जाम।

इश्क़ मजाज़ी छा गई, क्या सुबहो क्या शाम।।

 

पैगम्बर ने सिर्फ की, धरम करम की बात।

कमबख्तों ने फिर रची, भांति भांति की जात।।

 

पागल मनवा तू जरा, अपने दिल में देख।

सौ बातों का सार है, सबका मालिक एक।।

 

देखों ढलती शाम से, चंदा और चकोर।

आपस में हैं सुन रहे, ज्यों सांसो का शोर।।

 

मानव की सम्वेदना, हुई बहुत बदनाम।

मानवता भी पूछती, कब आओगे राम।।

 

-------------------------------------------------------

(मौलिक व अप्रकाशित)  - मिथिलेश वामनकर 

-------------------------------------------------------

Views: 451

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 9, 2014 at 8:39pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर सर । आप लोगो के मार्गदर्शन में प्रयासरत हूँ।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 9, 2014 at 3:00pm

//पलकों से उतरी जरा, धीरे धीरे रात ।
शामों की दहलीज पे, साए करते बात ।।//

//धुंधली धुधली हो गई, यादों की सौगात।
अफरातफरी वक़्त की, ये कैसे हालात।।//

//ढलती शामों में किया, पीपल ने संतोष।
बिछड़ गई परछाइयाँ, सूरज भी खामोश ।।//

क्या कहने हैं भाई मिथिलेश वामनकर जी, दोहों में  भी ग़ज़ल जैसी मंज़र निगारी कर दी, हार्दिक बधाई स्वीकारें। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 8, 2014 at 11:16pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी एवं आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी आपके निर्देशानुसार सुधार किये है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 6, 2014 at 8:20pm

आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी..... आपने जिस बारीकी से दोहों पढ़ा और त्रुटियों को चिन्हित किया इसके लिए आभार बहुत बहुत धन्यवाद .. मैं शीघ्र ही आपके निर्देशानुसार त्रुटियाँ सुधारने का प्रयास करता हूँ ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 6, 2014 at 8:17pm

रम आदरणीया राजेश कुमारी जी आपकी रचनाओं पर उपस्थिति मात्र ही मेरे लिए बड़ी बात है आपकी टिप्पणी से उन बारीक बातों पर ध्यान देने लगा हूँ जो सर्जना के दौरान चूक जाती थी .. आपने दोहों में जो त्रुटियाँ चिन्हित की है उन्हें जल्द ही सुधारता हूँ . आपका बहुत बहुत आभार, धन्यवाद .. आप आगे भी ऐसा ही सदैव आशीर्वाद बनाए रखे 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 6, 2014 at 10:50am

सुंदर दोहे रचे है | मात्रा  भार  सुधार ले  जैसा की आद राजेश कुमारी  जी ने सुझाया है | "ए" में 2 मात्राए  होती है जिसे आपने शायद 

एक गिनकर 2-3 जगह गलतियाँ की है | जो दोहा मुझे श्रेष्ठ लगा वह -

पागल मनवा तू जरा, अपने दिल में देख

सौ बातों का सार है, सबका मालिक एक | ----- बहुत खूब 

 

देखों ढलती शाम से,चंदा और चकोर,

इक दूजे की सुन रहे, ज्यों सांसो का शोर |  - बहुत सुंदर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 5, 2014 at 9:13pm

घर बदला, बदला जहां, बदले बदले लोग

अर्थ बदल गए देखिए क्या जोगी क्या जोग---विषम चरण में १४ मात्राएँ हो रही हैं ए/ऐ की मात्रा दीर्घ होती है 

 

देखों ढलती शाम से चंदा और चकोर

एक दूजे की सुन रहे ज्यों सांसो का शोर----विषम चरण में १४ मात्राएँ हो रही हैं --एक =२१ .....आपस में हैं सुन रहे  ----कर सकते हैं 

मानव की सम्वेदना हो गई है बदनाम-----सम चरण में १२ मात्राएँ हो रही हैं ---हुई बहुत बदनाम ---कर सकते हैं 

मानवता भी पूछती कब आओगे राम

ढलती शामों में किया पीपल ने संतोष

बिछड़ गई परछाइयाँ सूरज भी खामोश---वाह्ह्ह 

पागल मनवा तू जरा अपने दिल में देख

सौ बातों का सार है सबका मालिक एक---उत्कृष्ट दोहा 

बहुत सुन्दर लिखा है बस ये कुछ सुधार कर लीजिये 

हार्दिक बधाई आपको 

 

 

 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 5, 2014 at 8:29pm

आदरणीय नरेन्द्र जी आपका

बहुत बहुत धन्यवाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Loading… Loading feed

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service