घर बदला, बदला जहां, बदले बदले लोग ।
अर्थ बदलते देखिए, क्या जोगी क्या जोग ।।
पलकों से उतरी जरा, धीरे धीरे रात ।
शामों की दहलीज पे, साए करते बात ।।
धुंधली धुधली हो गई, यादों की सौगात।
अफरातफरी वक़्त की, ये कैसे हालात।।
आवाजे होती गई, सब की जब खामोश।
शहर बिचारा क्यों मढ़े, सन्नाटे को दोष।।
ढलती शामों में किया, पीपल ने संतोष।
बिछड़ गई परछाइयाँ, सूरज भी खामोश ।।
हमने जब से ले लिया, इश्क़ हकीकी जाम।
इश्क़ मजाज़ी छा गई, क्या सुबहो क्या शाम।।
पैगम्बर ने सिर्फ की, धरम करम की बात।
कमबख्तों ने फिर रची, भांति भांति की जात।।
पागल मनवा तू जरा, अपने दिल में देख।
सौ बातों का सार है, सबका मालिक एक।।
देखों ढलती शाम से, चंदा और चकोर।
आपस में हैं सुन रहे, ज्यों सांसो का शोर।।
मानव की सम्वेदना, हुई बहुत बदनाम।
मानवता भी पूछती, कब आओगे राम।।
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(मौलिक व अप्रकाशित) - मिथिलेश वामनकर
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Comment
//पलकों से उतरी जरा, धीरे धीरे रात ।
शामों की दहलीज पे, साए करते बात ।।//
//धुंधली धुधली हो गई, यादों की सौगात।
अफरातफरी वक़्त की, ये कैसे हालात।।//
//ढलती शामों में किया, पीपल ने संतोष।
बिछड़ गई परछाइयाँ, सूरज भी खामोश ।।//
क्या कहने हैं भाई मिथिलेश वामनकर जी, दोहों में भी ग़ज़ल जैसी मंज़र निगारी कर दी, हार्दिक बधाई स्वीकारें।
आदरणीया राजेश कुमारी जी एवं आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी आपके निर्देशानुसार सुधार किये है. सादर
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी..... आपने जिस बारीकी से दोहों पढ़ा और त्रुटियों को चिन्हित किया इसके लिए आभार बहुत बहुत धन्यवाद .. मैं शीघ्र ही आपके निर्देशानुसार त्रुटियाँ सुधारने का प्रयास करता हूँ ...
रम आदरणीया राजेश कुमारी जी आपकी रचनाओं पर उपस्थिति मात्र ही मेरे लिए बड़ी बात है आपकी टिप्पणी से उन बारीक बातों पर ध्यान देने लगा हूँ जो सर्जना के दौरान चूक जाती थी .. आपने दोहों में जो त्रुटियाँ चिन्हित की है उन्हें जल्द ही सुधारता हूँ . आपका बहुत बहुत आभार, धन्यवाद .. आप आगे भी ऐसा ही सदैव आशीर्वाद बनाए रखे
सुंदर दोहे रचे है | मात्रा भार सुधार ले जैसा की आद राजेश कुमारी जी ने सुझाया है | "ए" में 2 मात्राए होती है जिसे आपने शायद
एक गिनकर 2-3 जगह गलतियाँ की है | जो दोहा मुझे श्रेष्ठ लगा वह -
पागल मनवा तू जरा, अपने दिल में देख
सौ बातों का सार है, सबका मालिक एक | ----- बहुत खूब
देखों ढलती शाम से,चंदा और चकोर,
इक दूजे की सुन रहे, ज्यों सांसो का शोर | - बहुत सुंदर
घर बदला, बदला जहां, बदले बदले लोग
अर्थ बदल गए देखिए क्या जोगी क्या जोग---विषम चरण में १४ मात्राएँ हो रही हैं ए/ऐ की मात्रा दीर्घ होती है
देखों ढलती शाम से चंदा और चकोर
एक दूजे की सुन रहे ज्यों सांसो का शोर----विषम चरण में १४ मात्राएँ हो रही हैं --एक =२१ .....आपस में हैं सुन रहे ----कर सकते हैं
मानव की सम्वेदना हो गई है बदनाम-----सम चरण में १२ मात्राएँ हो रही हैं ---हुई बहुत बदनाम ---कर सकते हैं
मानवता भी पूछती कब आओगे राम
ढलती शामों में किया पीपल ने संतोष
बिछड़ गई परछाइयाँ सूरज भी खामोश---वाह्ह्ह
पागल मनवा तू जरा अपने दिल में देख
सौ बातों का सार है सबका मालिक एक---उत्कृष्ट दोहा
बहुत सुन्दर लिखा है बस ये कुछ सुधार कर लीजिये
हार्दिक बधाई आपको
आदरणीय नरेन्द्र जी आपका
बहुत बहुत धन्यवाद
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