For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल ~ फिर मेरे होँठोँ की तुम

2122 2122 2122 212

फिर मेरे होँठोँ की तुम मुस्कान लेकर आ गये ।
जा रही थी जिन्दगी तुम जान लेकर आ गये ।

ख्वाबोँ के उजडे शहर मेँ कोई दस्तक हो गयी ,
तुम सजाकर फिर नये अरमान लेकर आ गये ।

मेरी किस्मत ने दिखाई और ही तस्वीर थी ,
जिन्दगी की तुम अलग पहचान लेकर आ गये ।

प्यार खुशबू सादगी अहसास नग्मा आरजू ,
दिल मेँ तुम कितने हँसी मेहमान लेकर आ गये ।

आज तो मौसम जुदा है आज आलम और है ,
तुम बदलते वक्त का फरमान लेकर आ गये ।

मौलिक व अप्रकाशित
नीरज

Views: 1094

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Madan Mohan saxena on December 11, 2014 at 4:32pm

प्यार खुशबू सादगी अहसास नग्मा आरजू
दिल मेँ तुम कितने हँसी मेहमान लेकर आ गये

अच्छी गज़ल

Comment by Neeraj Nishchal on December 11, 2014 at 10:24am
बहुत बहुत आभार प्रकट करता हूँ आपका आदरणीय संपादक महोदय जी ।
जी मेरे भी खयाल मेँ भी आया था ये पर मैने सोचा शायद ऐसे ही रखना ठीक रहेगा । पर आपने जानकारी दी है उसके लिये बहुत बहुत शुक्रिया । मै इसको सुधार लेता हूँ । मै एक निवेदन आपसे और करना चाहता हूँ मै यहाँ अपनी पुरानी गज़लोँ मेँ सुधार करना चाहता हूँ और उसके लिये आपकी अनुमति चाहता हूँ क्योँ कि आपको पुनः approvel देने की कृपा करनी होगी आप चाहेँगे तो मै ये कर सकूँगा ,सादर ।
Comment by Neeraj Nishchal on December 11, 2014 at 10:16am
धर्मेन्द्र जी बहुत बहुत आभार प्रकट करता हूँ ।
Comment by Neeraj Nishchal on December 11, 2014 at 10:15am
राहुल दंगी जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया अदा करता हूँ ।
Comment by Neeraj Nishchal on December 11, 2014 at 10:13am
सोमेश जी आपने जिस तरीके से गज़ल पर आ करके गज़ल के रूप मेँ तारीफ की है बधाई दी है उसके लिये मै आपका बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूँ बहुत बहुत आभार प्रकट करता हूँ ।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 9, 2014 at 2:50pm

//प्यार खुशबू सादगी अहसास नग्मा आरजू ,
दिल मेँ तुम कितने हँसी मेहमान लेकर आ गये ।//

अच्छी गज़ल हुई है भाई नीरज मिश्रा जी, बधाई स्वीकारें। सानी में शब्दों के मध्य कॉमा देना क्यों भूल गए ? क्या आप जानते हैं कि इस तरह से मिसरा कहना ग़ज़ल का एक मुहासिन कहलाता है जिसे तेवर कहते हैं ?

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 8, 2014 at 8:34pm

अच्छे अश’आर हुए हैं नीरज जी, दाद कुबूल कीजिए

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 5, 2014 at 11:10am
वाह बहुत सुन्दर गजल नीरज भाई
Comment by somesh kumar on December 4, 2014 at 10:55pm

प्यार को गुनगुनाती गज़ल है आपकी 

हंसती और मुस्कुराती गज़ल है आपकी 

है जब  फैली निराशा और अंधेरगर्दी 

आशा औ' उजाला जगती गज़ल आपकी 

Comment by Neeraj Nishchal on December 4, 2014 at 10:23pm
बहुत बहुत शुक्रिया कंवर करतार साहब ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service