सांसदों की निधि बढ़ाने की मांग पर आखिरकार सरकार ने मुहर लगा ही दी। बरसों से देश के सैकड़ों सांसद यह मांग करते आ रहे थे कि उनकी निधि 2 करोड़ से बढ़ाकर 5 करोड़ रूपये कर दी जाए। सांसदों की इन बहुप्रतीक्षित मांग के लिए एक समिति भी बनाई गई थी, जिसके माध्यम से सांसद निधि बढ़ाने की सिफारिश सरकार से की गई थी और जिसमें अंतिम छोर के गांव-गरीब के विकास की दुहाई दी गई थी। पहले तो इस मुद्दे पर सरकार की दिलचस्पी नजर नहीं आई थी, लेकिन सरकार के अंदर व बाहर तो वही सांसद हैं, जिन्हें संसद में प्रस्ताव पारित करने का अधिकार है। मजेदार बात यह है कि विचारों के दृष्टिकोण से हर पार्टी के सांसदों की अपनी लॉबी होती है, लेकिन यहां देखने वाली बात यह रही कि सांसद निधि बढ़ाने के मामले में अधिकतर सांसदों की हामी रही तथा पूरी तरह संगठित व एक नजर आए। यही सांसद के हित की बहस में कभी सहमत नहीं होते और आरोप-प्रत्यारोप भी चलता है, मगर बात वही है, जब बात खुद की हित की हो तो भला वे गरम लोहे पर हथौड़ा मारने से कैसे चूक सकते हैं। देर से ही सही, सरकार भी दबाव के कारण धीरे-धीरे नरम पड़ गई और देश के करीब 8 सौ सांसदों को 2 करोड़ के बजाय अब 5 करोड़ रूपये, विकास निधि देने का निर्णय लिया गया है। निश्चित ही सांसदों के चेहरे खिल गए होंगे, लेकिन जिन आम लोगों के रहमो-करम पर वे उंची कुर्सी पर बैठे हैं, उनके कैसे हालात हैं, यह भी जानना आवश्यक है। सीपीआई नेता गुरूदास ने निधि बढ़ाने पर चिंता जाहिर की और कहा है कि इससे जनता के हितों का कोई भला होने वाला नहीं है। कुछ सांसदों ने निधि बढ़ाए जाने को एक तरह से सिरदर्दी करार दिया है।
सांसदों की निधि बढ़ाने से सरकार की सोच, विकास की हो सकती है और देश के सांसदों ने भी ऐसी ही बातों की दुहाई देते हुए अपनी निधि बढ़ाने की जुगत भिड़ाई है। मगर यहां सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या सांसदों की निधि बढ़ाया जाना जायज है ? इस बात के कई बिंदुओं पर विचार हो सकता है और हर किसी के अपने तर्क हो सकते हैं, लेकिन हमारा यहां मानना है कि देश में अधिकतर सांसदों द्वारा निधि को विकास कार्य में खर्च नहीं किया जाता और जो राशि, विकास के नाम पर दी जाती है, वह भी रेवड़ी की तरह बांट दी जाती है। सांसद यह नहीं देखते कि आखिर जिस संस्था या व्यक्ति को अपनी निधि की राशि दे रहे हैं, वह समाज हित में कितना काम करते हैं ? यह बात आए दिन सामने आती रहती है कि सांसद निधि की राशि का इसलिए खर्च नहीं हो पाता, क्योंकि कमीशन के खेल की उलझन बनी रहती है।
हम यह नहीं कहते कि सांसद निधि का सदुपयोग नहीं होता। देश में अनेक ऐसे सांसद हैं, जो अपनी निधि की पूरी राशि खर्च कर क्षेत्रीय विकास में योगदान देते हैं, मगर इसके दूसरे पहलू भी हैं। देश में ऐसे सांसदों की भी कमी नहीं है, जो सांसद निधि खर्च कर विकास करना मुनासिब नहीं समझते। इस बात खुलासा हर बरस मीडिया रिपोर्ट के माध्यम से होती रहती है, फिर भी सांसद क्यों नहीं जागते ? यह एक यक्ष प्रश्न है, क्योंकि अब तक देश के बहुतायत सांसद अपनी निधि को रेवड़ी की तरह बांटने के बाद भी 2 करोड़ खर्च करने में भी कंजूस साबित होते रहे हैं या कहंे कि वे खर्च करने में ही रूचि नहीं लेते। ऐसे में निश्चित ही क्षेत्रीय विकास थम जाता है।
जब सांसदों ने 2 करोड़ के बजाय 5 करोड़ अपनी निधि तय किए जाने की मांग की, उसी समय कई तरह के सवाल जानकारों ने खड़े किए गए थे, जिनमें प्रमुख रूप से यही बात थी कि जब अधिकतर सांसद 2 करोड़ की राशि खर्च नहीं कर पाते तो क्या वे 5 करोड़ की राशि क्षेत्रीय विकास में खर्च कर पाएंगे ? सरकार द्वारा निधि बढ़ाए जाने के बाद, अब भी यह सवाल आज भी कायम है। सांसदों द्वारा निधि खर्च किए जाते हैं और जैसा कमीशन का खेल चलने की बात सामने आती रहती है, उससे निधि शुरूआत करने की जो मंशा थी, वह पूरी नजर नहीं आती, क्योंकि आम जनता सांसद निधि से दूर ही नजर आती है। यदि ऐसा नहीं होता तो सांसद निधि की राशि गरीबों के उत्थान में खर्च होते, परंतु निधि खर्च किए जाने की स्थिति पर बारीकी से गौर करने के बाद पता चलता है कि निधि की राशि उन संस्थानों व संस्थाओं को रेवड़ी की तरह बांटा जाता है, जिन्हें इसकी जरूरत कम है और जिन गरीबों के विकास के लिए राशि, सरकार देती है, उससे गरीब व आम जनता निधि के लाभ से अछूते ही रहते हैं। आखिर बात वही है कि जब सांसदों की 2 करोड़ की निधि खत्म नहीं हो पाती तो 5 करोड़ की राशि बढ़ाने का भला क्या मतलब ? यहां पर सरकार को सबसे पहले सांसदों पर दबाव बनाते हुए पहल करना चाहिए था कि वे 2 करोड़ की राशि को समय पर खर्च नहीं कर पाते और जिससे विकास कार्य नहीं हो पाते। जब 5 करोड़ दे दिए जाएंगे तो फिर कैसे वे राशि को आम लोगों के लिए हितकारी साबित कर पाएंगे ?
क्या सांसदों ने अपनी निधि बढ़वाने के पहले इस बात की चिंता की कि आजाद भारत में आज भी आधी से अधिक आबादी महज 20 रूपये से कम आमदनी में जीवन जीने मजबूर हैं। देश में जितनी भी सरकार अब तक बनी है, सभी ने यह कहकर वोट बटोरी कि गरीबी, भुखमरी और बेकारी खत्म कर दी जाएगी, लेकिन अफसोस अब तक इन मुद्दों पर कोई कारगर नीति नहीं बनाई जा सकी है। देखा जाए तो गरीबों के नाम पर केवल राजनीति होती आ रही है और गरीब व्यक्ति मुफलिसी से उबर नहीं पा रहे हैं। सरकार केवल इतना दावा करती नजर आती है कि कुछ बरसों में गरीबी, बेकारी खत्म हो जाएगी, लेकिन समस्याएं जस की तस बनी हुई है। दुनिया के किसी भी मुल्क के लिहाज से भारत में युवाओं की संख्या अधिक है, लेकिन आज हम कहां है और देश के भविष्य माने जाने वाले युवा की हालत कैसी है ? यह जानने की फिक्र किसी को नहीं है। अधिकतर युवा बेकारी के शिकार हैं और वे गलत दिशा में मुड़ रहे हैं। इस तरह के हालात के लिए आखिर कौन जिम्मेदार हो सकता है ? या फिर कोई जिम्मेदारी लेने के लिए हिम्मत जुटा सकता है ? इन बातों पर भी गहन विचार किए जाने की जरूरत है।
राजकुमार साहू
लेखक इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार हैं
जांजगीर, छत्तीसगढ़
मोबा . - 098934-94714
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