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वक्त और मुझमे लडाई है

२१२२ २१२२ २१२२ २

बादे मुद्दत फिर मुझे वो याद आयी है!
फिर किसी ने फूल से तितली उडाई है!!

फिर चुभा है दिल में मेरे याद का कंकड!
फिर से उसने आतमा मेरी दुखाई है!!

इसमें उसकी कुछ ख़ता ना है जमाने सुन!
दरअसल इस वक्त और मुझमें लडाई है!!

राख बनकर उड गये दिल जाँ जिगर अरमाँ!
इस तरह उसने मेरी चिट्ठी जलाई है!!

देख ली सारी ये दुनिया और खुदा को भी!
इस जहाँ में सिर्फ़ अपना अपनी माँई है!!

फेंक डाला दिल मेरा उसने गुमां है यह!
सच तो ये है मेरे ही इस दिल को काई है!!

सबसे ज्यादा विषभरी जहरीली ऐ'राहुल'!
उस सितमगर जादुगर की दिलरुबाई है!!


मौलिक व अप्रकाशित
राहुल दांगी
जन्म तिथि-०९-०१-१९९२

Views: 742

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Comment by Rahul Dangi Panchal on December 10, 2014 at 11:32am
आदरणीय गिरीराज जी सादर धन्यवाद! आपके सुझाव पर गौर करुंगा

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2014 at 11:25am

आदरणीय राहुल भाई , बढ़िया गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।

आदरणीय मिथिलेश भाई की सलाह उचित है , खयाल की जियेगा !

एक बात - आत्मा ( 22 ) को आतमा ( 212 ) मे बांधना शायद ठीक न हो !

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 10, 2014 at 10:02am
बहुत बहुत धन्यवाद योगिन्दर जी
Comment by Rahul Dangi Panchal on December 10, 2014 at 12:17am
सादर धन्यवाद सौरभ जी!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 9, 2014 at 10:33pm

आपको रचनाकर्म करते देखना एक सुखद अनुभूति है भाई राहुलजी. आप प्रयासरत रहे हैं और प्रदत्त सुझावों पर ध्यान दें तदनुरूप अभ्यास करें.
हार्दिक शुभेच्छाएँ.



Comment by Rahul Dangi Panchal on December 9, 2014 at 1:31pm
सौमेश जी सादर धन्यवाद!
Comment by Rahul Dangi Panchal on December 9, 2014 at 1:31pm
आदरणीय योगराज जी सादर धन्यवाद! आपके कहे पे अवश्य गौर करूंगा

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 9, 2014 at 12:02pm

वाह वाह भाई राहुल दांगी जी, ग़ज़ल अच्छी हुई है। थोड़ा कहन को उठायें एवँ बह्र को और साधें, सोने पर सुहाग हो जायेगा।

Comment by somesh kumar on December 9, 2014 at 10:47am

राख बनकर उड गये दिल जाँ जिगर अरमाँ!
इस तरह उसने मेरी चिट्ठी जलाई है!!

राख बनकर उड गये दिल जाँ जिगर अरमाँ!
इस तरह उसने मेरी चिट्ठी जलाई है!!

सुंदर  रचना भाई जी 

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 9, 2014 at 9:06am
आदरणीय मिथिलेश जी सादर धन्यवाद!

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