अतुकांत - स्वीकार हैं मुझे तुम्हारे पत्थर
*****************************************
स्वीकार हैं मुझे आज भी
कल भी थे स्वीकार , भविष्य मे भी रहेंगे
तुम्हारे फेके गये पत्थर
तब भी फल ही दिये मैनें
आज भी दे रहा हूँ , और मेरा कल जब तक है देता रहूँगा
मैं जानता हूँ और मानता हूँ , इसी में तो मेरी पूर्णता है
यही मेरी नियति है , और उद्देश्य भी
चाहे मेरी जड़ों को तुमने पानी दिया हो या नहीं
मैं अटल हूँ , अपने उद्देश्य में
पर आज मना करने का जी कर रहा है , पत्थरों के लिये
इसलिये नहीं कि , मुझे अब पीड़ा होती है
इसलिये , केवल इस लिये कि,
अब तुम्हारे फेके पत्थर फलों तक नहीं पहुँच रहे
मेरे अनुभवों से पके बहुत से फल ऊपर हैं
बहुत ऊपर ,
पत्थरों की पहुँच और तुम्हारे निशाने से दूर
तो, चढ़ जाओ ,
मेरे घुटनों पर पैर रख के, खड़े हो जाओ मेरे कन्धों पर , सर पर
और तोड़ लो , मेरे अनुभवों से पके मीठे फल
इससे पहले कि समय मेरी जड़ों को कमज़ोर कर दे
और मै गिर पड़ूँ धरती पर
भरभरा के ।
*****************
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय भाई गिररिराज जी इस बेहतरीन कविता के लिए कोटि कोटि बधाई ।
आदरणीय गिरिराज सर अपने अनुभवों को क्या खूब शब्द दिया है आपने बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय गिरिराज सर अपने अनुभवों को क्या खूब शब्द दिया है आपने बहुत बहुत बधाई आपको
जीवन के अनुभव को बुनती हुई रचना वृक्ष का बिम्ब बहुत ही सार्थक हुआ ,बहुत बहुत बधाई आ० गिरिराज जी|
भाई गिरिराज,
जीवन की गूढ़ता को बहुत बढिया ढंग से सजाया है इस रचना में ,बहुत बहुत बधाई I
आदरणीय सौरभ भाई , कथ्य के अनुमोदन और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
शिल्प सुधारने का एक और प्रयास करूंगा और पोस्ट करूँगा ।
बहुत सुंदर. जीवन में अच्छे -बुरे अनुभवों को बहुत ही गहरे मनन से साझा किया है आपने आदरणीय गिरिराज जी. बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय राहुल भाई , आपकी सदाशयता का बहुत शुक्रिया !
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपकी सराहना ने मेरी मेहनत सफल कर दी , आपका दिली आभार ।
एक बात --एक निवेदन - मेरे( अनुज ) के लिये आदरणीय न लगाया कीजिये । वैसे भी अनुज के साथ आदरणीय से अच्छा प्रिय लगता है ।सादर ।
आदरनीय योगराज भाई , आपकी सराहना ही मेरा संबल है , आपका दिली शुक्रिया ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online