हाँ
किसी अज्ञात यात्रा से
लोग यहाँ आते है
कोई आता है चुपके से दुबक कर
कोई आता है सीने से चिपककर
कोई आता इन्तेजार ख़त्म करने
किसी के आने पर बजते है नगाड़े
ढोल-ताशे
यहाँ आकर
फिर शुरू होती है एक नयी यात्रा
गंतव्य तक जाने की मंजिल पाने की
परिश्रम गंवाने की कुछ सुस्ताने की
जी भर रोने की मन-मैल धोने की
शांति से सोने की खुद अपने होने की
जो अभी यहीं है
उन्हें कही जाना है
किसी से किया हुआ वादा निभाना है
उन्हें इन्तेजार है उस घड़ी आने की
जब कोई गाड़ी उन्हें ले जायेगी
हो सकता है वहां जहाँ वह चाहते हों
शायद वहां भी जहाँ नहीं चाहते
एक् लम्बा सिलसिला है
आने-जाने वालो को
इसीलिये रहती है यहाँ एक भीड़ बड़ी
जहाँ देखो वही एक लम्बी सी लाइन खडी
मै भी खड़ा हूँ यहाँ जीवन की रेल के
छोटे प्लेटफार्म पर कभी तो आयेगी
नींद से जगाएगी मुझे ले जायेगी
छुक-छुक रेलगाड़ी
Comment
सोमेश जी
कृतज्ञ हुआ i
मिथिलेश जी
अभिभूत हूँ i सादर i
हरि प्रकाश जी
आपके स्नेह को प्रणाम i
आ0 निकोर जी
स्नेह-वर्षा हेतु सादर् आभार i
विजय सर !
उत्साहवर्धन हेतु आभार i
सरना जी
बहुत बहुत आभार i
ज़िन्दगी का सफ़र ,जन्म की यात्रा से मृत्य की मंजिल तक ,बड़ी स्पष्टता से उस यात्रा का बयाँ करती सुंदर कविता
छोटे प्लेटफार्म पर कभी तो आयेगी
नींद से जगाएगी मुझे ले जायेगी
छुक-छुक रेलगाड़ी
बेहतरीन रचना ..... आदरणीय vijay nikore सर बहुत बहुत बधाई
जो अभी यहीं है
उन्हें कही जाना है......शानदार रचना है सर हार्दिक बधाई सर !
//यहाँ आकर
फिर शुरू होती है एक नयी यात्रा
गंतव्य तक जाने की मंजिल पाने की//
वाह, क्या कहने। सुन्दर रचना के लिए बधाई।
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