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पूरब  से जैसे  चले, शीतल  मंद  बयार ।

मैं रोया तुम रो पड़ी, समझो जीवन पार ।१।

 

जीवनसाथी तू सखी, इक मंदिर का छंद ।

तेरे सहचर  में  मिला, पूजा  का आनंद ।२।

 

तेरी  फूलों-सी हंसी, कलियों सी मुस्कान ।

जीवन को जैसे मिला, खुशियों का सामान।३।

 

ईश्वर  ने कैसा रचा, तेरा  मेरा साथ ।

मेरी ताकत बन गए, मेंह्दी वाले हाथ ।४।

 

रिश्ता अपना खूब है, तू शाखा मैं पात ।

बिन बोले क्या खूब तू, समझे मेरी बात।५।

 

दरपन देख संवार लो, माथे का सिन्दूर ।

सूरज जैसे क्षितिज में, फिसला है कुछ दूर ।६।

 

अपनी यादों की सखी, मत छेड़ो वो बात।

हँसते-रोते फिर कही, बीत न जाए रात ।७।

 

जीवन में चाहे  मचे, अपने भागमभाग।

साथ रहे तो गीत हो, बात करें तो फाग।८।

 

ठंडी ठंडी रेत पर, चलती हो तुम साथ।

बातें करती चांदनी,  बीते  सारी  रात।९।

 

परबत से इक पेड़ तक,  ऐसे उतरी शाम।

चुपके से वो लिख गई,  जैसे तेरा नाम ।१०।

 

तुमने हँसकर कह दिया, जग माटी का खेल।

मन दीपक जलता रहा, बिन बाती बिन तेल।११।

 

निकलो जब परदेश को, धुप दिए के साथ।

सिर्फ  रहेंगे  पास में,  चूड़ी  वाले  हाथ ।१२।

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  - मिथिलेश वामनकर 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 18, 2014 at 7:46pm
डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर रचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 18, 2014 at 7:29pm

ईश्वर  ने कैसा रचा, तेरा  मेरा साथ ।

मेरी ताकत बन गए, मेंह्दी वाले हाथ ।४।-----बहुत सुन्दर 

बहुत अच्छी दोहावली रची है ,हार्दिक बधाई 

 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 18, 2014 at 6:10pm

दोहों की अच्छी रचना हुयी है  i अंतिम दोहे में धूप  के स्थान पर धुप शायद टंकण त्रुटि है i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 18, 2014 at 11:05am
आदरणीय डॉ विजय शंकर जी आपको रचना पसंद आई लिखना सार्थक हुआ इस प्रोत्साहन के लिए आभार धन्यवाद

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 18, 2014 at 11:03am
आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी रचना को समय देने के लिए आपका आभार धन्यवाद।
Comment by Dr. Vijai Shanker on December 18, 2014 at 3:46am
वाह , कुछ काल्पनिक , कुछ वास्तविक। सुन्दर। बधाई आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on December 18, 2014 at 2:15am

बहुत ही सुन्दर रचना 

ईश्वर  ने कैसा रचा, तेरा  मेरा साथ ।

मेरी ताकत बन गए, मेंह्दी वाले हाथ । हार्दिक बधाई आदरणीय मिथिलेश भाई !सादर !

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