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तुझे पा लिया है जग पा लिया है
अब दिल में समाने लगी जिंदगी है

कभी गर्दिशों की कहानी लगी थी
मगर आज भाने लगी जिंदगी है

समय कैसे जाता समझ मैं ना पाता
अब समय को चुराने लगी जिंदगी है

कभी ख्बाब में तू हमारे थी आती
अब सपने सजाने लगी जिंदगी है

तेरे प्यार का ये असर हो गया है
अब मिलने मिलाने लगी जिंदगी है

मैं खुद को भुलाता, तू खुद को भुलाती
अब खुद को भुलाने लगी जिंदगी है

"मौलिक व अप्रकाशित"

मदन मोहन सक्सेना

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on December 20, 2014 at 6:58pm

कभी गर्दिशों की कहानी लगी थी 
मगर आज भाने लगी जिंदगी है.....सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकार करें  आदरणीय मदन मोहन सक्सेना जी!

Comment by somesh kumar on December 20, 2014 at 12:14am

भूल गई मैं सारी खुदाई /याद पिया की जाए ना 

रीझा ऐसे उसमें ये दिल /सूरत कोई भाए ना 

प्रेम की पूर्णता इसी ठहराव में दिखती है ,सुंदर भाव ,हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 19, 2014 at 12:27am

तुझे पा लिया है जग पा लिया है 
अब दिल में समाने लगी जिंदगी है

कभी गर्दिशों की कहानी लगी थी 
मगर आज भाने लगी जिंदगी है

सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए बधाई आपको आदरणीय मदन मोहन सक्सेना जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 18, 2014 at 7:57pm

आ. मदन मोहन भाई ,

मैं खुद को भुलाता, तू खुद को भुलाती
अब खुद को भुलाने लगी जिंदगी है  -- अच्छी बात कही , बधाई स्वीकार करें ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 18, 2014 at 6:26pm

मैं खुद को भुलाता, तू खुद को भुलाती
अब खुद को भुलाने लगी जिंदगी है---------------------- behtareen

Comment by Shyam Narain Verma on December 18, 2014 at 4:08pm

सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति ..बधाई आपको .

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