हिम्मत साथ नहीं देती है
किसको अपना दर्द बतायें कौन सुनेगा अपनी बात
सुनने वाले व्याकुल हैं अब अपना राग सुनाने को
हिम्मत साथ नहीं देती है खुद के अंदर झाँक सके
सबने खूब बहाने सोचे मंदिर मस्जिद जाने को
कैसी रीति बनायी मौला चादर पे चादर चढ़ती है
द्वार तुम्हारे खड़ा है बंदा , नंगा बदन जड़ाने को
दूध कहाँ से पायेंगें जो, पीने को पानी न मिलता
भक्ति की ये कैसी शक्ति पत्थर चला नहाने को
जिसे देखिये मिलता है अब चेहरे पर मुस्कान लिए
मुश्किल से मिलतें है अपने दिल से आज लगाने को
तेरी यादों की खुशबू अब मन उपवन महका देती है
फिर से आज ग़ज़ल निकली है महफ़िल को महकाने को
मौलिक और अप्रकाशित
प्रस्तुति
मदन मोहन सक्सेना
Comment
बधाई हो भाई अपने बहुत ही अच्छे ढंग से शब्दों का चयन किया और एक अच्छी कविता का सृजन किया
भावनाओं की अच्छी अभिव्यक्ति बधाई, टंकण त्रुटियों को एक बार देख लें, बधाई प्रेषित करता हूँ.
रीत प्रीत की सच्ची बातों से गुलशन महकाने को
आये लेकर सुन्दर रचना मोहन जी समझाने को
मंदिर मस्जिद भक्ति शक्ति कितनी बातें साझा की
बहुत बधाई हम देते है दिल से इस अफ़साने को
फिर से आज ग़ज़ल निकली है महफ़िल को महकाने को....सुन्दर रचना आदरणीय मदन मोहन जी !
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