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नवगीत : ये है नया नजरिया.

फटी भींट में चौखट ठोकी,

खोली नयी किवरिया.

चश्मा जूना फ्रेम नया है,

ये है नया नजरिया.

 

गंगा में स्नान सबेरे,

दान पूण्य कर देंगे.

रात क्लब में डिस्को धुन पर,

अधनंगे थिरकेंगे.

देशी पी अंग्रेजी बोलीं,

मैडम बनीं गुजरिया.

 

अपने नीड़ों से गायब हैं,

फड़की सोन चिरैया.

ताल विदेशी में नाचेंगी,

रजनी और रुकैया.

घूंघट गया ओढनी गायब,

उड़ती जाए चुनरिया.

 

चूल्हा चक्की कौन करे अब,

डिब्बे में भोजन है.

बहू कमाती नकद रोकडा.

पैसे का पूजन है.

गाँव हमारे गायब होते,

लन्दन बनी नगरिया.

**हरिवल्लभ शर्मा 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by मिथिलेश वामनकर on December 22, 2014 at 7:30pm

आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा सर ... बहुत ही सुन्दर और मनमोहक रचना ... बदलते परिवेश का बड़ा सजीव किन्तु मंत्रमुग्ध करता वर्णन .... अनुभवी की कलम से सृजित शानदार पंक्तिया, आपको हार्दिक बधाई .... बहुत दिनों बाद नए तेवर और नए कलेवर की रचना पढ़ी .... क्या खूब लिखा है -

अपने नीड़ों से गायब हैं,

फड़की सोन चिरैया.

ताल विदेशी में नाचेंगी,

रजनी और रुकैया.

घूंघट गया ओढनी गायब,

उड़ती जाए चुनरिया.

रचना में सम पर आते ही दिल झूम जाता है जैसे -

देशी पी अंग्रेजी बोलीं

मैडम बनीं गुजरिया.

घूंघट गया ओढनी गायब,

उड़ती जाए चुनरिया.

गाँव हमारे गायब होते,

लन्दन बनी नगरिया.

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 22, 2014 at 6:40pm
बदल रहे नजरियों का अच्छा चित्रण. एक कुछ भिन्न प्रस्तुति, बधाई आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा जी , सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 22, 2014 at 6:19pm

वाकई

चस्मा जून फ्रेम नया है i

एक अलग ही रंग की कविता i सुन्दर i मोहक i

Comment by Shyam Narain Verma on December 22, 2014 at 6:06pm

बहुत सुन्दर मनमुग्ध करता गीत ...बहुत बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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