छंद : घनाक्षरी
झट छायी चिंता-रेखा,
नीला-नीला पाँव देखा,
पहुँचे करीम चच्चा, शफ़ाख़ाना आस में.
देखते हकीम बोला,
पाँव में ज़हर फैला,
दोनों पाँव काट डाले, ज़िन्दग़ी की आस में.
बात हुई ज़ल्द साफ़,
कट गये पर पाँव,
डरता हकीम आया, चच्चा जी के पास में.
सुनो जी करीम भाई,
बात ये समझ आई,
लुंगी रंग छोड़ रही, बोला एक साँस में. :-)))))))))
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
आदरणीय सौरभ भईया, यह घनाक्षरी अभी भी मेरे कार्यालय के सभी मित्रों को गुदगुदाती है, सभी "लुंगी रंग छोड़ रही" कह कह हँसते हैं, आपको यह प्रस्तुति अच्छी लगी और आपका आशीर्वाद प्राप्त हुआ इसके लिए हृदय से आभार .
घनाक्षरी आपको अच्छी लगी, यह जान मुझे भी अच्छा लगा, आभार सोमेश जी.
आदरणीय शिज्जू भाई, सराहना हेतु आभार .
आदरणीय बागी जी , बहुत बिरला प्रयोग किया आपने , हास्य घनाक्षरी , वाह ! बहुत खूब । हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय बागी साहब , लोटपोट कर दिया आपने |घनाक्षरी के माध्यम से उत्पन्न हास्यरस अद्भुत है |कोटि अभिनन्दन |सादर
हा हा हा.. . नीम हकीम ख़तरेजान की सुन्दर बानग़ी प्रस्तुत हुई है !
इस हास्य घनाक्षरी के लिए दिल से बधाई स्वीकारें, भाई गणेशजी.
मैं आखिरी पद को बार-बार पढ़ के आनन्दित हो रहा हूँ. मेरी हँसी रुक नहीं रही, भाईजी. .. :-))))))))))
आनन्दित कर गई सर ,ये घनाक्षरी
आदरणीय गणेशजी बहुत सुंदर घनाक्षरी बन पड़ी है बहुत बहुत बधाई
सराहना और प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी .
प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीय भुवन निस्तेज जी .
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