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एक धरा है एक गगन है

एक धरा है एक गगन है

किंतु विभाजित अपना मन है

 

मीत किसी का ख़ाक बनेगा

उसकी ख़ुद से ही अनबन है

 

याद तुम्हारी महकाये मन

इस सहरा में इक गुलशन है

 

स्वर्ग तिहारे चरणों की रज

मातृधरा तुझको वंदन है

 

चौक बड़ा सा एक चबूतर

यादों में कच्चा आँगन है

 

नहीं बहलता खुशियों से मन

ग़म से अपना अपनापन है

 

आँसू बाती आँखें दीपक

दुख की लौ में सुख रोशन है

 

घाव दिये हैं जिनने दिल को

उनका दिल से अभिनन्दन है

 

रोजाना ढूँढू जिसमें ख़ुद को

माज़ी वो धुँधला दर्पण है

.

मौलिक व अप्रकाशित 

 

Views: 717

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Comment by Ram Ashery on December 25, 2014 at 11:24am

very nice congrats

Comment by khursheed khairadi on December 24, 2014 at 3:36pm

आदरणीय पाठक साहब ,राहुल डांगी साहब आपकी मूल्यवान टिप्पणियों ने मेरा उत्साहवर्धन किया है |हृदयतल से आभार |सादर  

Comment by khursheed khairadi on December 24, 2014 at 3:33pm

आदरणीय विजयशंकर जी ,गुमनाम साहब,शकूर साहब ,सोमेश जी ,अनुराग जी ,आदरणीया छाया जी ,आदरणीय हरिवल्लभ जी ,बागी साहब ,आप सभी के स्नेह और आशीर्वाद का हृदय से आभारी हूं |सादर  

Comment by khursheed khairadi on December 24, 2014 at 3:26pm

आदरणीय मिथिलेश जी ,स्नेह के लिए आभारी हूं |आखरी शेर का ऊला मिसरा 'रोज़ निहारूं जिसमें ख़ुद को "अथवा" हर दिन ढूँढू जिसमे ख़ुद को " रखा जा सकता है |त्रुटि पर ध्यान दिलाने एवं ग़ज़ल पर मुहब्बत बरसाने के लिए तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूं |सादर 

Comment by khursheed khairadi on December 24, 2014 at 3:17pm

आदरणीय हरिप्रकाश जी ,सादर आभार |स्नेह बनाये रखियेगा 

Comment by khursheed khairadi on December 24, 2014 at 3:15pm

आदरणीय गोपालनारायण साहब ,आपको ग़ज़ल पसंद आई और आपने स्नेहिल टीप की इसके लिए हृदय तल से आभार |आशा है आप इसी तरह आशीर्वाद बनाये रखेंगे |

सादर 

Comment by khursheed khairadi on December 24, 2014 at 3:11pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब ,आशीर्वाद के लिय हृदय से आभारी हूं |मेरे mts डोंगल ख़राब हो जाने और दूसरा डोंगल खरीदने में आलस कर जाने के कारण काफ़ी अरसा इस समृद्ध पोर्टल पर उपस्थिति दर्ज़ नही करा पाने के लिए क्षमाप्रार्थी हूं |आशा हैं आपके स्नेह में कोई कमी नहीं आई होगी |

सादर 

Comment by ram shiromani pathak on December 24, 2014 at 12:44am
आहा आनंद आ गया आदरणीय।।हार्दिक बधाई आपको
Comment by harivallabh sharma on December 24, 2014 at 12:23am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय khursheed khairadi साहब..

मीत किसी का ख़ाक बनेगा

उसकी ख़ुद से ही अनबन है

 

याद तुम्हारी महकाये मन

इस सहरा में इक गुलशन है...बहरीन शेर,,बधाई आपको.

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 23, 2014 at 10:43pm
बहुत सुन्दर वाह बहुत सुन्दर!

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