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नर्मदा के एक ऊंचे कगार पर खड़ा मै प्रकृति के अप्रतिम सौन्दर्य का अवलोकन कर रहा था कि एक ग्यारह वर्ष का बालक मेरे पास आया और बोला –‘बाबू जी मै इस कगार से नर्मदा मैया में छलांग लगाऊंगा तो तुम मुझे पांच रुपये दोगे ?’
‘क्यों, तुम इतना खतरा क्यों उठाओगे ?’
‘कल से खाना नहीं खाया, बाबू जी ‘
मैंने उसे दस रुपये दे दिए I वह मेरे पैरो मे लोट गया I तभी मुझे एक जोरदार ‘छपाक’ की आवाज सुनायी दी और उसके साथ ही एक ह्रदय विदारक चीख I मैंने घबरा कर नीचे देखा I एक दूसरा लड़का कगार से कूदा था पर उसका संतुलन बन नहीं पाया था I
‘माँ ने इसका उद्धार कर दिया, बाबू जी ‘ वह लड़का धीरे से बोला –‘एक दिन मेरा भी करेगी I’

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by somesh kumar on December 25, 2014 at 11:19pm

विवशता कुछ भी करा सकती है और नियति कुछ भी कर सकती है |सारगर्भित भावपूर्ण लघुकथा 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 25, 2014 at 11:17pm

आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपकी संवेदनशील आँखों से देखी-समझी घटना का लघुकथा रुपांतरण तथा भाई गणेश बाग़ी का तार्किक नज़रिया, मुझे दोनों परिस्थितियाँ सचेत करती हुई लग रही हैं.
इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 25, 2014 at 6:52pm

हरि प्रकाश दुबे जी

आपका समर्थन आह्लादकारी है i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 25, 2014 at 6:51pm

आ० बागी जी

आपके बहुमूल्य विचारों से अवगत हुआ i ज्ञानवर्धन भी हुआ i टंकण त्रुटि का सुधार  अवश्य कर लूँगा  i सादर i

Comment by Hari Prakash Dubey on December 25, 2014 at 6:28pm

अप्रतिम सौन्दर्य.....और‘माँ ने इसका उद्धार कर दिया.....सार्थक ,सजीव ....आदरणीय गोपाल नारायन जी आपको हार्दिक बधाई ...हरिद्वार मैं भी अक्सर ऐसा देखता हूँ कई बार !सादर !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 25, 2014 at 4:50pm

आदरणीय गोपाल नारायन जी, यह घटना आम है, छोटे छोटे लड़के लडकियां हर उस स्थान पर स्टंट करते दीखाई देते हैं जहाँ लोगो का ज्यादा मूवमेंट होता है, यह इनका धंधा है, बताने वाले तो यह भी बताते हैं कि इस तरह का गैंग है जो बच्चों से ऐसे काम करवाता है, इनको पैसा देना गलत काम को प्रोत्साहन देना ही हुआ .
कभी आजमाना हो तो उनसे कहिये कि काम करोगे ? तुरंत ये भाग खड़े होते हैं . 
घटना का सुन्दर वर्णन किया गया, ह्रदय = हृदय कर लीजियेगा आदरणीय .

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