नर्मदा के एक ऊंचे कगार पर खड़ा मै प्रकृति के अप्रतिम सौन्दर्य का अवलोकन कर रहा था कि एक ग्यारह वर्ष का बालक मेरे पास आया और बोला –‘बाबू जी मै इस कगार से नर्मदा मैया में छलांग लगाऊंगा तो तुम मुझे पांच रुपये दोगे ?’
‘क्यों, तुम इतना खतरा क्यों उठाओगे ?’
‘कल से खाना नहीं खाया, बाबू जी ‘
मैंने उसे दस रुपये दे दिए I वह मेरे पैरो मे लोट गया I तभी मुझे एक जोरदार ‘छपाक’ की आवाज सुनायी दी और उसके साथ ही एक ह्रदय विदारक चीख I मैंने घबरा कर नीचे देखा I एक दूसरा लड़का कगार से कूदा था पर उसका संतुलन बन नहीं पाया था I
‘माँ ने इसका उद्धार कर दिया, बाबू जी ‘ वह लड़का धीरे से बोला –‘एक दिन मेरा भी करेगी I’
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
विवशता कुछ भी करा सकती है और नियति कुछ भी कर सकती है |सारगर्भित भावपूर्ण लघुकथा
आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपकी संवेदनशील आँखों से देखी-समझी घटना का लघुकथा रुपांतरण तथा भाई गणेश बाग़ी का तार्किक नज़रिया, मुझे दोनों परिस्थितियाँ सचेत करती हुई लग रही हैं.
इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय.
हरि प्रकाश दुबे जी
आपका समर्थन आह्लादकारी है i सादर i
आ० बागी जी
आपके बहुमूल्य विचारों से अवगत हुआ i ज्ञानवर्धन भी हुआ i टंकण त्रुटि का सुधार अवश्य कर लूँगा i सादर i
अप्रतिम सौन्दर्य.....और‘माँ ने इसका उद्धार कर दिया.....सार्थक ,सजीव ....आदरणीय गोपाल नारायन जी आपको हार्दिक बधाई ...हरिद्वार मैं भी अक्सर ऐसा देखता हूँ कई बार !सादर !
आदरणीय गोपाल नारायन जी, यह घटना आम है, छोटे छोटे लड़के लडकियां हर उस स्थान पर स्टंट करते दीखाई देते हैं जहाँ लोगो का ज्यादा मूवमेंट होता है, यह इनका धंधा है, बताने वाले तो यह भी बताते हैं कि इस तरह का गैंग है जो बच्चों से ऐसे काम करवाता है, इनको पैसा देना गलत काम को प्रोत्साहन देना ही हुआ .
कभी आजमाना हो तो उनसे कहिये कि काम करोगे ? तुरंत ये भाग खड़े होते हैं .
घटना का सुन्दर वर्णन किया गया, ह्रदय = हृदय कर लीजियेगा आदरणीय .
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