कितना तामझाम....(नवगीत)
कितना तामझाम पसराया
जीवन आँगन में।
स्वर्णिम किरणें सुबह जगाती
दिन भर आपाधापी है।
साँझ धुँधलके से घिर जाती
रात तमस ले आती है।
तम को रोज झाड़ बुहरया
जीवन आँगन में।....कितना तामझाम पसराया
गजब मुखोटे मुख पर सजते
तन मशीन के कलपुर्जे।
जीने का दम भरने वाले
मानव ने ये खुद सरजे।
दूर खड़ा मन है खिसियाया
जीवन आँगन में।.....कितना तामझाम पसराया
रेलम पेला धक्का मुक्की
चलती आवाजाही है।
जीवन सरकस जैसा चलता
जोकर की वावाही है।
एक गिरा दूजा धकियाया
जीवन आँगन में।
कितना तामझाम पसराया
जीवन आँगन में।
.
सीमा हरि शर्मा 26.12.2014
(मेरा यह नवगीत मौलिक एवं अप्रकाशित है)
Comment
apke navgeet ke sabhi band ....nayab .....manmohak .lage ....bar bar aur bar bar padhoonga ......bahut hi khoob ...
आदरणीय सीमा हरि जी इस सुन्दर नवगीत के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ... इस पंक्तियों के लिए विशेष बधाई-
गजब मुखोटे मुख पर सजते
तन मशीन के कलपुर्जे।
जीवन सरकस जैसा चलता
जोकर की वावाही है।
तम को रोज झाड़ बुहरया (बुहराया) में टंकण त्रुटी हुई है ,,, सादर
सुंदर नवगीत हेतू बधाई
गजब मुखोटे मुख पर सजते
तन मशीन के कलपुर्जे।.....सुन्दर रचना आदरणीया सीमा हरी शर्मा जी, हार्दिक बधाई !
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