सुन लो नयन अबोले मेरे
सुन लो नयन अबोले मेरे
कितना कुछ कहने को आकुल
चिर-प्रतिक्षित हृदय-द्वार की
खड़काते हैं कब से सांकल !
सुनो खड़कती उर की पीड़ा
क्रन्दन करता रहा वियोगी
तुम संजीवन सुषेण तुम्हीं हो
में अमोध का मारा रोगी |
जहाँ-जहाँ पे पट में भिती
तहाँ-तहाँ से किरने खोजूँ
अवचेतन को चेतन करने
के उपाय निरंतर सोचूँ |
सोच रहा हूँ क्या मैं गाऊँ
तू भी भीतर से अकुलाए
पट हृदय के खोल झटपट
आकर मुझसे नयन मिलाए |
सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
सोमेश भाई बहुत ही खूबसूरत रचना ,बधाई आपको !
वाह ... सोमेश भाई ...बहुत सुन्दर रचना .... हर पंक्ति में सुन्दर भावपूर्ण लयात्मकता .....बहुत बहुत बधाई
आदरणीय सोमेश कुमार जी अच्छी रचना है बधाई आपको
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