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सुन लो नयन अबोले मेरे

सुन लो नयन अबोले मेरे

सुन लो नयन अबोले मेरे

कितना कुछ कहने को आकुल

चिर-प्रतिक्षित हृदय-द्वार की

खड़काते हैं कब से सांकल !

सुनो खड़कती उर की पीड़ा

क्रन्दन करता रहा वियोगी

तुम संजीवन सुषेण तुम्हीं हो

में अमोध का मारा रोगी |

जहाँ-जहाँ पे पट में भिती

तहाँ-तहाँ से किरने खोजूँ

अवचेतन को चेतन करने

के उपाय निरंतर सोचूँ |

सोच रहा हूँ क्या मैं गाऊँ

तू भी भीतर से अकुलाए

पट हृदय के खोल झटपट

आकर मुझसे नयन मिलाए |

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )  

 

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on December 28, 2014 at 8:05pm

सोमेश भाई बहुत ही खूबसूरत रचना ,बधाई आपको !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2014 at 1:46pm

वाह ... सोमेश भाई ...बहुत सुन्दर रचना .... हर पंक्ति में सुन्दर भावपूर्ण लयात्मकता .....बहुत बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 28, 2014 at 10:22am

आदरणीय सोमेश कुमार जी अच्छी रचना है बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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