तुम आए नहीं
तुम आए नहीं-आएगें कहकर
और एक हम थे चले आए कुछ नही कहकर
इसी उम्मीद से की तुम आओगे ज़रूर
चाहे हो जितना मज़बूर |
वक्त जाता रहा,निगाह ठहरी रही
दिल धड़कता रहा ,सोच ठहरी रही
तुम आ गए लगा यूँ ही रह –रहकर
तुम आए नहीं –आएगें कहकर,
कॉल बजती रही नाद आया नही
प्रश्न उठते रहे ,जवाब आया नही
मायुस होता रह मन सितम सह-सहकर
तुम आए नहीं-आएगें कहकर |
शाम जाती रही ,यकीं जाता रहा
क्यों किया यकीं ,अफ़सोस आता रहा,
यही सोचता रहा ,चहल कर-करकर
तुम आए नहीं आएगें कहकर
और फिर आखिर में ना मायूसी रही,
ना खामोशी रही,ना आस रही,ना एहसास रहा
गुजर गई एक शाम फिर
तेरे इंतजार की तपिश सह-सहकर
तुम आए नहीं-आएगें कहकर |
सोमेश कुमार (०९/०९/२००९)(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
"तुम आए नहीं-आएगें कहकर |" बहुत भावपूर्ण रचना रची है | हार्दिक बधाई श्री सोमेश कुमार जी
मेरी वंदना
प्रभु मेरी वंदना सुनो, शुभ आशीष सबको दीजिए
नव वर्ष के आगमन पर, कल्याण सबका कीजिए ।
दुष्ट पापी नीच दांनव का अब दलन तुम कीजिए
प्रेम करुणा सद्भाव मैत्री का बीज तुम बो दीजिए ।
गरीब और कमजोर सबका, सारा दुख हर लीजिए
सूर्य की पहली किरण संग, उपहार हमको दीजिए ।
ज्ञान ज्योति पहुंचे घर घर, अंधकार सब हर लीजिए
बच्चा कोई अशिक्षित न रहे, ऐसी व्यवस्था कीजिए ।
सब बाधा को दूर कर, प्रगति पथ प्रशस्त कीजिए
ज्ञान की अविरल धारा को,लोगों तक पहुंचा दीजिए ।
मंदिर मस्जिद गिरजा से अब निजात सबका कीजिए
हम खड़े हैं यह आस लेकर हम पर उपकार कीजिए ।
सभी विघ्न बाधा तोड़कर, एक सरल राह बना दीजिए
सदियों से पिछड़े लोगों का, उत्थान अब कीजिए ।
गरीब का कहीं शोषण न हो, अब निश्चित कीजिए
झूठे मक्कार लोगों को, अब तत्काल सजा दीजिए ।
देश प्रगति में बाधा का, भगवन तुरंत संहार कीजिए
भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों का, पर्दा फास कीजिए ।
समाज से अन्याय मिटे, ये न्याय सबको दीजिए
सही और गलत चुन सकें, सद्बुद्धि सबको दीजिए ।
माँ बहनें सभी सुरक्षित हो,विश्वास जागृत कीजिए
सुख समृद्धि मिले सबको, संस्कार सबको दीजिए ।
प्रेम पुष्प चहुं ओर खिले, वाटिका विकसित कीजिए
पशु पक्षी भयभीत न हो, ये विकास सबका कीजिए।
देश की विषाक्त होती नदियों की, अब सुरक्षा कीजिए
अब शीतल मंद समीर बहे, ऐसा सुंदर प्रबंध कीजिए ।
देश में अमन और सौहार्द बढ़े, उत्थान सबका कीजिए
हमारी सीमाएं सुरक्षित हो,अब ताकत हमको दीजिए ।
अत्याचार को हम मिटा सके, शक्ति हमको दीजिए
दुश्मन का मर्दन कर सके, वो अस्त्र हमको दीजिए ।
प्रभु मेरी वंदना सुनो, राम आश्रय को अमर कीजिए
नव वर्ष के आगमन पर, कल्याण सबका कीजिए ।
मौलिक एव अप्रकाशित
राम आश्रय
गुजर गई एक शाम फिर
तेरे इंतजार की तपिश सह-सहकर
तुम आए नहीं-आएगें कहकर |
कभी कभी ऐसा होता है ...आदरणीय श्री सोमेश कुमार जी!
प्रश्न उठते रहे ,जवाब आया नही.......बहुत सुन्दर सोमेश भाई ,हार्दिक बधाई !
तुम आए नहीं-आएगें कहकर
इसी उम्मीद से की तुम आओगे ज़रूर
वक्त जाता रहा,निगाह ठहरी रही
अफ़सोस आता रहा,
और फिर आखिर में मायूसी रही,
तुम आए नहीं-आएगें कहकर
आदरणीय सोमेश भाई आपके शब्द, आपकी पंक्तियाँ , आपके लिए
बढ़िया आदरणीय प्रयासरत रहें
तुम आए नहीं
तुम आए नहीं-आएगें कहकर
और एक हम थे चले आए कुछ नही कहकर
इसी उम्मीद से की तुम आओगे ज़रूर
चाहे हो जितना मजबूर --------------------------------- सोमेश जी बहुत सुन्दर i पथ प्रशस्त हो i सस्नेह i
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