For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 1212 22/112

तू मुहब्बत न आजमा मेरी

है तेरे वास्ते वफ़ा मेरी

 

यूँ कहे पर न जा ज़माने के

गाह चौखट तलक तो आ मेरी

 

अश्क़ चाहें निकलना आँखों से

रोकती है उन्हें अना मेरी

 

कौन रखता हिसाब ज़ख़्मों का

खुद मैं कातिब हयात का मेरी

 

रेत में दफ़्न हो गया कतरा

जो ज़बीं से अभी गिरा मेरी

 

ज़ख़्म देते हैं वो मुझे पहले

फिर वही करते हैं दवा मेरी

 

हर सफर में उदास राहों पर

साथ मेरे चले सदा मेरी

 

राहे माज़ी में लौटकर देखा

शक्लें बिखरी थीं जा ब जा मेरी

 

(कातिब- लेखक,  जा ब जा- जगह-जगह)

 

-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 724

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 30, 2014 at 9:08am

आदरणीय डॉ आशुतोष सर आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 29, 2014 at 11:27pm

आदरणीय सोमेश कुमार जी आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 29, 2014 at 11:26pm

आदरणीय सौरभ सर रचना पर आपकी प्रतिक्रिया की सदैव प्रतीक्षा रहती है आपका बहुत बहुत शुक्रिया हौसलाअफ़ज़ाई के लिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 29, 2014 at 11:25pm

आदरणीय मिथिलेश जी आप स्वयं एक समर्थ रचनाकार हैं, आपके अनुमोदन से रचनाकर्म सार्थक हुआ है आपका हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 29, 2014 at 11:23pm

आदरणीय हरिप्रकाश दूबे जी मेरी रचना को मान देने के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 29, 2014 at 11:22pm

आदरणीय गणेश जी आपका हार्दिक आभार जो आपने रचना को सराहा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 29, 2014 at 11:22pm

आदरणीय गिरिराज सर आप जैसे रचनाकार का अनुमोदन पा के रचनाकर्म सार्थक हुआ है आपका बहुत  बहुत शुक्रिया

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 29, 2014 at 2:33pm

आदरणीय शिज्जू जी ..इस ग़ज़ल के हर उम्दा शेर के लिए आपको  ढेर सारी बधाई ....

कौन रखता हिसाब ज़ख़्मों का

खुद मैं कातिब हयात का मेरी..पर यह शेर तो दिल को बेहद भाया ..सादर 

Comment by somesh kumar on December 28, 2014 at 11:17pm

तू मुहब्बत न आजमा मेरी

है तेरे वास्ते वफ़ा मेरी

कौन रखता हिसाब ज़ख़्मों का

खुद मैं कातिब हयात का मेरी

इन दोनों शे'रों ने छु लिया ,गज़ल स्वयं में समर्थवान कलमकार की कलम से है इससे ज़्यादा क्या कहना 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 28, 2014 at 9:04pm

बहुत खूब भाई शिज्जू जी.. इस पूरी ग़ज़ल को एक साँस में पढ़ गया. हर शेर पर मुग्ध होता गया. आपकी ग़ज़ल के ये शेर बातचीत करते हैं. वाह वाह !

लेकिन इन दो अशआर पर मैं विशेष तौर दाद दे रहा हूँ.
 
कौन रखता हिसाब ज़ख़्मों का
खुद मैं कातिब हयात का मेरी

राहे माज़ी में लौटकर देखा
शक्लें बिखरी थीं जा ब जा मेरी

ढेर सारी शुभकामनाएँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सालिक गणवीर shared Admin's page on Facebook
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर  होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service