मजदूरों की बस्ती में दो कँपकँपाती हुई आवाज़ें
“सुना है घर वापसी के 5 लाख दे रहे हैं”
“हाँ भाई मैं भी सुना”
“हम तो घर में ही रहते हैं, कुछ हमें भी दे देते”
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ. शिज्जु "शकूर" जी बहुत की कम शब्दों में सन्देश देने वाली इस रचना पर आपको हार्दिक बधाई !
आदरणीय गिरिराज सर आपका हार्दिक आभार, आपकी बात सही है कि दोनो गंदे हैं लेकिन ये बात नहीं भूल सकते की मूल समस्याओं की तरफ हुक्मरान का ध्यान नहीं जा रहा है या मुख्य मुद्दे बेकार की बातों में उलझकर गुम हो गये हैं
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय जितेन्द्र जी आपका बहुत बहुत शु्क्रिया
आदरणीय मिथिलेश भाई आपका हार्दिक आभार
आदरणीय श्याम नारायण जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय सोमेश कुमार जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीया अर्चना जी आपका हार्दिक आभार
आदरणीय शिज्जु भाई , सफल लघु , लघुकथा के लिये हार्दिक बधाई स्वीकर करें । इस विषय को मै कुछ कहने के लायक नही समझता इस लिये कभी इस विषय को छूता नहीं । क्योंकि हाथ दोनों के गन्दे हैं ( ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है ) और कथा में इशारा किसी एक की तरफ है । कानून का एक नियम है -- ए मैन शुड कम विथ क्लीन हैंड । यहाँ सभी हाथ गन्दे हैं कौन किसे कहे ।
शिज्जू भाई
बहुत सांकेतिक किन्तु अर्थवान i आपको बधाई i
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