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मजदूरों की बस्ती में दो कँपकँपाती हुई आवाज़ें

“सुना है घर वापसी के 5 लाख दे रहे हैं”

“हाँ भाई मैं भी सुना”

“हम तो घर में ही रहते हैं, कुछ हमें भी दे देते”

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 29, 2014 at 12:16pm

कम शब्दों में ही बहुत बड़ी बात कह दी आपने. बधाई आदरणीय शिज्जू जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 29, 2014 at 11:02am
क्या खूब कहा है आदरणीय शिज्जु भाई जी। ये सचमुच मौके पर चौका है। बधाई
Comment by Shyam Narain Verma on December 29, 2014 at 10:25am

सुंदर लघु कथा के लिए बधाई 

Comment by somesh kumar on December 28, 2014 at 11:50pm

सफल रचना समय का अनुमोदन करती है |यह भी उसी प्रकार की लघुकथा है |

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