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तरही ग़ज़ल -- मोगरे के फूल पर .....

ग़ज़ल

बुजदिलों के शह्र में मर्दानगी सोई हुई..
जुल्मतों की शब मुसलसल, रोशनी सोई हुई ।

बच्चियों पर बढ़ रहे अपराध सीना तानकर ...
हर किसी की आँखों में शर्मिंदगी सोई हुई ।

शह्र के फुटपाथ पर रातों का मंजर खौफनाक .....
मुफलिसी की ओढ़ चादर जिन्दगी सोई हुई ।

मुज़रिमों का हौसला अब दिन-ब-दिन बढ़ता गया ....
देश के सब मुन्सिफ़ों की लेखनी सोई हुई ।

चाँद सूरज फूल कलियाँ इन पे मैं लिक्खूँ ग़ज़ल ? .....
एक मुद्दत से मिरी तो शायरी सोई हुई ।

तरही मिसरा ये रहा जिस पर मेरे अशआर थे
" मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई "

-- दिनेश कुमार ।

( मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 1, 2015 at 8:22am

आदरणीय गिरिराज सर इस शानदार ग़ज़ल के लिये आपको बहुत बहुत बधाई

Comment by दिनेश कुमार on December 31, 2014 at 6:33am
शुक्रिया खुर्शीद साहब, सुशील जी,आशुतोष जी और हरिप्रकाश जी रचना को पढ़ कर हौसला अफजाइ के लिए आप सभी आ. साथियों का तहेदिल शुक्रिया।
Comment by Hari Prakash Dubey on December 30, 2014 at 11:03pm

 मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई.......सुन्दर  रचना पर हार्दिक बधाई  आदरणीय दिनेश जी !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 30, 2014 at 1:52pm

शह्र के फुटपाथ पर रातों का मंजर खौफनाक .....
मुफलिसी की ओढ़ चादर जिन्दगी सोई हुई ।..बेहतरीन ..इस शादार ग़ज़ल के लियेताहे दिल बधाई सादर 

Comment by Sushil Sarna on December 30, 2014 at 11:27am

शह्र के फुटपाथ पर रातों का मंजर खौफनाक .....
मुफलिसी की ओढ़ चादर जिन्दगी सोई हुई ।

वाह दिल को चीरते अशआर … बहुत खूब .... शानदार ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय।

Comment by khursheed khairadi on December 30, 2014 at 10:26am

चाँद सूरज फूल कलियाँ इन पे मैं लिक्खूँ ग़ज़ल ? .....
एक मुद्दत से मिरी तो शायरी सोई हुई ।

आदरणीय दिनेश साहब ,खुबसूरत ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन |

Comment by दिनेश कुमार on December 30, 2014 at 9:03am
शुक्रिया मिथिलेश भाई, शकूर साहब, सौरभ सर जी,गिरिराज भंडारी सर जी, उमेश कटारा जी, रचना को पढ़ने और प्रोत्साहन देने के लिए आपका आभार। अनुराग जी, कोशिश करता हूँ मतला सुधारने की।
Comment by umesh katara on December 30, 2014 at 8:52am

चाँद सूरज फूल कलियाँ इन पे मैं लिक्खूँ ग़ज़ल ? .....
एक मुद्दत से मिरी तो शायरी सोई हुई । ..................वाह सर वाह हरिक शेर बेहतरीन है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 30, 2014 at 7:38am

क्या बात है , आदरणीय दिनेश भाई , लाजवाब गज़ल कही है , दिली मुबारक बाद कुबूल करें ।

शह्र के फुटपाथ पर रातों का मंजर खौफनाक .....
मुफलिसी की ओढ़ चादर जिन्दगी सोई हुई ।
चाँद सूरज फूल कलियाँ इन पे मैं लिक्खूँ ग़ज़ल ? .....
एक मुद्दत से मिरी तो शायरी सोई हुई ।       -- इन अश आर के लिये दिल से बधाइयाँ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 30, 2014 at 12:44am

तरही मिसरा ये रहा जिस पर मेरे अशआर थे
" मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई ".. . 

ओय होय..  :-)))

बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाइयाँ. ..  

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