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" मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई -
( इस मिसरे पर गज़ल कहने की मैने भी कोशिश की है , आपके सामने रख रहा हूँ )
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ग़म सभी बेदार लगते , हर खुशी सोई हुई
जग गई लगती है फिर से, बेकली सोई हुई -
बेदार -जागे हुये, बेकली - अकुलाहट
फैलती ही जा रही बारूद की बदबू जहाँ
बे ख़ुदी में लग रही बस्ती वही सोई हुई
जगमगाती लग रही है रात शह्रों की मगर
देखता हूँ इस चमक में बेबसी सोई हुई
जड़- तने ख़ामोश लगते , नाचतीं हैं डालियाँ
सोचता हूँ , क्यों वहीं पर मुर्दनी सोई हुई
मुंतज़िर हूँ , कब कबा उधड़े , हक़ीकत हो अयाँ -
हर बनावट में कहीं है सादगी सोई हुई
मुंतज़िर - प्रतीक्षा में , क़बा – चोगा
खुद को जो कामिल समझते हैं, उन्हें मालूम हो -
बात कोई है अधूरी सब में ही सोई हुई
कामिल – पूर्ण
क़ैद है मेरी नज़र में वो नज़ारा ख़ूब रू
" मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई "
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय शिज्जु भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ।
आदरणीय गिरिराज सर बेहतरीन ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय खुर्शीद भाई , आपकी सराहना मुझे हमेशा हौसला देती है , उत्साह वर्धन के लिये आपका दिल से आभारी हूँ ।
आदरणीय राहुल भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय हरि प्रकाश भाई ,हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।
जगमगाती लग रही है रात शह्रों की मगर
देखता हूँ इस चमक में बेबसी सोई हुई
खुद को जो कामिल समझते हैं, उन्हें मालूम हो -
बात कोई सी अधूरी सब में है सोई हुई
आदरणीय गिरिराज सर उम्दा ग़ज़ल हुई है |सभी अशहार लाज़वाब हुये हैं |हार्दिक बधाई |सादर अभिनन्दन |
देखता हूँ इस चमक में बेबसी सोई हुई ......आदरणीय गिरिराज सर,बहुत सुन्दर ,हार्दिक बधाई आपको ! सादर
शुक्रिया , आदरणीय मिथिलेश भाई ।
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