पति-पत्नी डाइनिंग टेबल पर लंच के लिए बैठे ही थे कि डोरबेल बजी।
पति ने दरवाज़ा खोला तो सामने ड्राइवर बल्लू था। उसने गाड़ी की साफ़-सफाई के लिए चाबी मांगी तो उसे देखकर पति भुनभुनाये :
“आ गए लौट के गाँव से ... जाते समय पेमेंट मांगकर कह गए थे कि साहब, गाँव में बीबी बच्चों का इन्तजाम करके, दो दिन में लौट आऊंगा और दस दिन लगा दिए…”
क्रोधित मालिक के आगे निष्काम और निर्विकार भाव से, स्तब्ध खड़ा ड्रायवर, बस सुनता रहा-
“अब फिर बहाने बनोओगे कि फलाने-ढिकाने की तबियत ख़राब हो गई थी.....ये हो गया था या वो वो ..... देखो बल्लू अब ये नहीं चलेगा...... एक तो तुमको पांच हजार की पेमेंट दे..... रोज़ खाना भी खिलाये और तुम ऐसा करों....... अब तुम्हारी पेमेंट से दस दिन का पैसा काटूँगा और नौकरी करना है तो अपने खाने का इंतजाम कर लो।”
उसे कार की चाबी देकर दरवाजा बंद कर दिया। पति डाइनिंग टेबल के पास पहुँच गए।
पत्नी – “खाना ठंडा है, मैं गरम कर लाती हूँ। “
पति – “नहीं रहने दो, भूख नहीं है, खाने का मन नहीं कर रहा।”
पत्नी – “मन तो मेरा भी नहीं है।”
देर तक दोनों मौन बैठे रहे. इस मौन की चुप्पी पति ने तोड़ी.
पति – “बल्लू अब कुछ ज्यादा ही सिर चढ़ गया है।”
पत्नी- “सही कहा....”
फिर चुप्पी.....
पति- “बल्लू कल शाम से ट्रेन में बैठा होगा, आज बारह बजे पहुँचा होगा। लगता है अपने कमरे पे नहीं गया, सीधे यहीं आ गया।”
पत्नी- “मैं भी यही सोच रही थी।”
पति – “वो कल शाम से भूखा होगा।”
पत्नी – “हाँ होगा तो....”
पति- “ऐसा करो एक थाली परोस के दे आओ उसे।”
एक निपुण गृहणी के सधे हाथ अकस्मात ही बड़ी तत्परता से सक्रीय हो गए।
थाली परोसी और दरवाजा खोलकर बल्लू को आवाज लगाईं। बल्लू दौड़ते हुए आया... देखा माता अन्नपूर्णा थाली लिए खड़ी है।
आशा और विश्वास से प्रफुल्ल ड्रायवर की कृतज्ञ द्रवित आँखें।
पत्नी लौटकर आई तो देखा कि पति थाली परोसकर, बड़े ही चाव से ठंडी दाल के साथ ठंडी चपाती खा रहे थे।
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(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर
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Comment
gajab likha hai aap ne
man ko chho0 gayaa
आदरणीय मिथिलेश जी , मानवीय सदगुणों की पराकाष्ठा का कारुणिक चित्रण लम्बे अंतराल के बाद (प्रेमचंद जी और प्रसाद जी के बाद )
आपकी इस लघु कथा में पढ़ने को मिला है | ऐसी करुणावती गृहणी घर घर में हो यह सुखद कथा मन को बहुत भाई |सादर अभिनन्दन
भाई जी ,बेशक से रचना एक द्यामुर्ती मालिक की और ईशारा है ,पर ये रचना ,कहानी जैसी लग रही है ,शायद लघुकथा कम से कम शब्दों में गहरी बात कहने की कला है |जब की कहानी पू रे विस्तार के साथ अपने संदेश को देती है |अच्छी कोशिश है |
यह लघुकथा क्या इतिवृत्तात्मक या वर्णनात्मक-शैली में कहलाएगी ?
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