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ग़ज़ल -- मुझ पे कब इख्तियार मेरा है ....

मुझ पे कब इख्तियार मेरा है
यूँ नए साल का सवेरा है.

ख़ैरियत लोग मेरी पूछें जब
ज़ेह्न ने दर्द ही उकेरा है .

इश्क़ बाजों से पूछ कर देखो
चाँद के पार भी बसेरा है.

वक़्त की धुन पे नाचती दुनिया
वक़्त सबसे बड़ा सपेरा है.

धर्म ईमान कुफ़्र की बातें
मुझ पे वाइज़ असर ये तेरा है .

नाम तुझ पर 'दिनेश' जँचता नहीं
तेरी किस्मत में जब अंधेरा है .

दिनेश कुमार
( मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by khursheed khairadi on January 1, 2015 at 2:04pm

वक़्त की धुन पे नाचती दुनिया 
वक़्त सबसे बड़ा सपेरा है.

इश्क़ बाजों से पूछ कर देखो 
चाँद के पार भी बसेरा है.

आदरणीय दिनेश जी ,उम्दा अशहार हुये हैं | मक्ते मैं तखल्लुस का अच्छा प्रयोग हुआ है | खुरशीद=दिनेश  होने से मक्ते में आपके मेरे भावों की संगत अच्छी बैठेगी |हा.. हा... परिहास पर मत जाइयेगा |ग़ज़ल काफ़ी सुन्दर हुई है  |सादर अभिनन्दन 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 1, 2015 at 1:53pm

वक़्त की धुन पे नाचती दुनिया 
वक़्त सबसे बड़ा सपेरा है...बहुत ही सुंदर ..सच भी है 

इस रचना और बिशेस रूप से इस शेर के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2015 at 12:47pm

नाम तुझ पर 'दिनेश' जँचता नहीं
तेरी किस्मत में जब अंधेरा है .------- sundar I

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 1, 2015 at 9:44am
बहुत सुन्दर गजल आदरणीय!

वक़्त की धुन पे नाचती दुनिया
वक़्त सबसे बड़ा सपेरा है .....वाह क्या बात है!

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