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आँधियों में ही दीपक जलाते हैं हम

२१२/  २१२/    २१२   /२१२

आँधियों में ही दीपक जलाते हैं हम

आहिनी हैं इरादे दिखाते हैं हम

 

आपको देखते देखते क्या हुआ!

आईये दिल की धड़कन सुनाते हैं हम

 

चाँद के सामने चाँद कैसा लगे

सोच कर भी न कुछ सोच पाते हैं हम

 

आईने पर हमारी नजर जब पडी

सोच कर हंस दिए क्या छुपाते हैं हम

 

बेबफा ही सही प्यार तो प्यार है

याद आता है जितना भुलाते हैं हम

 

दोस्तों पे यकी आज भी है हमें

दोस्ती की कसम अब भी खाते हैं

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 2, 2015 at 7:29pm
आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी बहुत ही प्यारी ग़ज़ल है। एक एक अशआर आपने बड़े प्यार से और दिल जीतने वाले लहज़े में कहा है। गुनगुनाते हुए आनंद आ गया। इतनी प्यारी ग़ज़ल गुनगुनाने का अवसर प्रदान करने के लिए धन्यवाद। आपको इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 2, 2015 at 7:28pm
वाह ! बहुत ही सुन्दर. बधाई , आदरणीय डॉ o आशुतोष मिश्रा जी , सादर।
Comment by Anurag Prateek on January 2, 2015 at 7:24pm

क्या कहने सर जी  

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