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नये साल की ये सुबह, सुन कोयल का गान ।

मन में ऊर्जा भर गई, तन में आई जान ।।

 

सर्द हवा की ले छुअन, मुख से निकले भाप।

भला-भला सा लग रहा, अंगारों का ताप।।

 

समय वक्र की ऊर्ध्व गति, अधो उम्र की चाल।

जीवन जो है हाथ में, गड्ढे में ना डाल।।

 

बीत गया जो वर्ष तो, देखें ना लाचार।

अपने सपनों को मिले, एक नया आधार।।

 

मोहक आँखों को लगे, एक सुहाना दृश्य।

पीछे क्या सौंदर्य के, हो मालूम अवश्य।।

 

-मौलिक व अप्रकाशित*

*संशोधित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 4, 2015 at 4:57pm

भाई रामशिरोमणि जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 4, 2015 at 4:57pm

आदरणीय हरिप्रकाश जी आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 4, 2015 at 4:56pm

आदरणीय   डॉ.कंवर करतार 'खन्देह्ड़वी'  साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 4, 2015 at 3:54pm

बहुत खूब शिज्जू भाई..

शरद-शिशिर की ताल पर, शिज्जू पढ़ते छन्द
शब्द-शब्द के ताप से, पंक्ति-पंक्ति में मन्द..

आपके दोहों पर हृदयतल से शुभकामनाएँ..

एक बात... इतनी मुलामीयत से अभिव्यक्त हुई कहन को क्यों नहीं मुलायम ही रहने देते ..

देखिये, सर्द हवा का स्पर्श है.. को सर्द हवा की ले छुअन  किया जाय तो !.. :-))


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 4, 2015 at 3:49pm

आदरणीय शिज्जू भाई, पाँचों दोहे खुबसूरत बन पड़ें हैं बधाई स्वीकार करें .

Comment by ram shiromani pathak on January 4, 2015 at 3:43pm
वाह वाह बहुत ही सुन्दर दोहे।बधाई शिज्जू भाई
Comment by Hari Prakash Dubey on January 4, 2015 at 3:04pm

आदरणीय  शिज्जु "शकूर" जी  इन सुन्दर दोहों  पर आपको हार्दिक बधाई !

Comment by कंवर करतार on January 4, 2015 at 1:31pm

गया वर्ष जो ले गया, छोड़ें उसका साथ।

जो भी अपने पास हैं, खुशियाँ वही यथार्थ।।----

भाई शकूर ,दोहे बढ़िया बने हैं, बधाई I

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