कमल-नैन या कंज-लोचन है वह
कहते है शोक-विमोचन है वह
पद्म -पांखुरी जैसे है अधर
रक्त-नलिन से कपोल है सुघर
नील-नीरज सा मोहक वदन
वपुष नीलोत्पल सुषमा-सदन
है दीर्घ बाहे अम्बुज की नाल
पाद-पुष्ट मानो है पंकज मृणाल
हाथ की हथेली है राजीव-दल
विकसित है कर में श्याम-शतदल
चरण-सरोज की है महिमा अनूप
सांवले सरोरुह सा खिला-खिला रूप
रहता प्रफुल्ल जिसका अंतस-कमल
नीलोफर रूप जिसका विमल-अमल
हा ! अब्ज का यह ढेर कौन ?
बोल ! बोल ! बोल ! मेरे मुखर मौन !
राम हैं या कृष्ण हैं महज अंदाज से
या फिर तुलसी-सूर-कविता के ब्याज से
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
हरि प्रकाश जी
आपका आभारी हूँ i
श्याम नारायन वर्मा जी
सादर आभार i
रहता प्रफुल्ल जिसका अंतस-कमल
नीलोफर रूप जिसका विमल-अमल
हा ! अब्ज का यह ढेर कौन ?
बोल ! बोल ! बोल ! मेरे मुखर मौन ……………सुंदर कविता ,खूबसूरत शब्दों में पिरोयी हुई । आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर श्ब्दों का चयन बहुत अच्छा है । अभिनंदन आपका … सादर!
सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई ! सादर .......... |
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