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भला क्या ?

बुरा क्या ?

 

खुदी से

मिला क्या

 

शज़र फिर

फला क्या ?

 

लिखे बस

पढ़ा क्या ?

 

फलक था

गिरा क्या ?

 

कहे बस

सुना क्या ?

 

नहीं दम

चला क्या ?

 

गजल ये

क़ता क्या ?

 

कटे पर

हवा क्या ?

 

मुहब्बत

दवा क्या ?

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर

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Comment

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Comment by gumnaam pithoragarhi on January 11, 2015 at 11:00pm

वाह कमाल मज़ा आ गया वाह बहुत खूब है सर

Comment by khursheed khairadi on January 11, 2015 at 7:23pm

आदरणीय मिथिलेश जी इक-रुक्नी ग़ज़ल में अर्थों और भावों के साथ शेरियत भी बख़ूबी निभाई है आपने |सादर अभिनन्दन |

Comment by somesh kumar on January 11, 2015 at 2:59pm

कहीं नसीहत ,कहीं सवाल,इस रूप में  ,अच्छी मिशाल |जो भी लिखते हो बस -कमाल ही कमाल 

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