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मुझे मार कर क़्यों ज़लाया नहीं है

तेरा कुछ भी मुझ पर बक़ाया नहीं है
मुझे मार कर क़्यों ज़लाया नहीं है
..
सज़ा बे-बज़ह ही मिली है क़सम से
क़िसी को भी मैंने सताया नहीं है
..
गया तू नज़र से,मेरी ज़ान लेक़र 
मग़र जहर क्यों कर पिलाया नहीं है
..
मोहब्बत में कर दूँ ज़रा भी मिलावट
व़फा ने ये मुझको सिख़ाया नहीं है
..
मुझे कह रही हैं मुसलसल ये हिचकी
अभी तक भी तूने भुलाया नहीं है

मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा

Views: 622

Comment

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Comment by umesh katara on January 14, 2015 at 7:56am

Rahul Dangi  जी हार्दिक शुक्रिया

Comment by umesh katara on January 14, 2015 at 7:56am

गिरिराज भंडारी  जी हार्दिक शुक्रिया

Comment by umesh katara on January 14, 2015 at 7:55am

Hari Prakash Dubey  जी हार्दिक शुक्रिया

Comment by umesh katara on January 14, 2015 at 7:54am
Comment by umesh katara on January 14, 2015 at 7:54am
Comment by umesh katara on January 14, 2015 at 7:53am

somesh kumar जी हार्दिक शुक्रिया

Comment by umesh katara on January 14, 2015 at 7:53am

मिथिलेश वामनकर जी शुक्रिया

Comment by umesh katara on January 14, 2015 at 7:52am

gumnaam pithoragarhi जी शुक्रिया 

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 13, 2015 at 1:59pm
वाह बहुत सुन्दर गजल आदरणीय!
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 13, 2015 at 11:17am

मुझे कह रही हैं मुसलसल ये हिचकी
अभी तक भी तूने भुलाया नहीं है....क्या कहने..

आ0 भाई उमेश जी , बहुत बेहतरीन ग़ज़ल हुई हैं.  हार्दिक बधाई

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