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कई रोज से खाली पेट थी
संभाल न सकी भूख
पसीज कर
दया करूणा ने
दो रोटी दस रूपये में
इतना भरा उसका पेट
फिर नौ माह
फूला रहा 


वो कुत्ता बिल्ली नहीं थी
बिना किसी एवज
भूख मिटा दी जाती
विक्षिप्त थी तो क्या
थी तो स्त्री न 

*******************************

आशा पाण्डेय ओझा 

मौलिक अप्रकाशित 

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Comment by asha pandey ojha on January 14, 2015 at 11:23pm

आदरणीय JAWAHAR LAL SINGH जी हार्दिक धन्यवाद आपकी कीमती प्रतिक्रिया के लिए


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2015 at 11:01pm

आदरणीया आशाजी, आपकी पंक्तियों ने दिल को चीर कर रख दिया है. जिस गहराई से आपने एकांगी दर्द को साझा किया है वह क्लिष्ट समाज की जुगुप्साकारी भावनाओं को परत-परत उघारती है. स्त्री की अस्मिता पर इतना बड़ा प्रश्न चिह्न लगाता हुआ वह समाज खिलवाड करता है जिसके लिए मातृसत्ता को नकारना कठिन है. हर कदम पर !.
आपकी प्रस्तुत रचना और आपकी संवेदनशीलता के प्रति मन नत है.
सादर बधाइयाँ

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 14, 2015 at 8:27pm

मार्मिक और हृदयविदारक पर समाज की सच्चाई की और इंगित करती हुई रचना आदरणीया आशा जी!

Comment by asha pandey ojha on January 14, 2015 at 4:32pm

सम्मानीय somesh kumar जी धन्यवाद  सही खा आपने समाज में ऐसे  सभ्य विक्षिप्त  बहुत  हैं 

Comment by asha pandey ojha on January 14, 2015 at 4:30pm

सम्मानीय  Hari Prakash Dubey जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका _/\_

Comment by asha pandey ojha on January 14, 2015 at 4:29pm

सम्मानीय  khursheed khairadi जी दिल से आभार _/\_

Comment by asha pandey ojha on January 14, 2015 at 4:29pm

स्नेहिल अमन कुमार जी बहुत बहुत शुक्रिया _/\_

Comment by asha pandey ojha on January 14, 2015 at 4:28pm

हार्दिक धन्यवाद सम्मानीय  laxman dhami जी _/\_ वेसे नाम मेरा आशा है प्रतिभा नहीं 

Comment by asha pandey ojha on January 14, 2015 at 4:27pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी सर आपका हृदय से आभार 

Comment by asha pandey ojha on January 14, 2015 at 4:26pm

हार्दिक धन्यवाद सम्मानीय श्याम नारायण वर्मा जी _/\_

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