For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बाउजी, आखिरकार वो “रोडियो वाली फिल्म” ने झंडे गाड़ दिए ,सनसनी पैदा कर दी है, और साहब सुना है की हीरो ने और जिसने फिल्म बनाई है उसने  “करोड़ों रूपये अन्दर कर लिए हैं “ !

“हाँ बात तो सही कह रहा है तू .........तूने देखी है वो फिल्म ?”

नहीं साहब पैसे नहीं जुटा पाया, मैं लोगों के जूते सिलता ,पॉलिश करते हुए यहीं लोगों से उसकी कहानी सुनता रहता हूँ !!

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

Views: 691

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on January 15, 2015 at 9:04pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी सर इस लघुकथा पर आपके आशीर्वाद के लिए हार्दिक आभार ! सादर

 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 15, 2015 at 9:00pm

इस लघुकथा पर आपके उत्साहवर्धन और सराहना हेतु दिल से आभार आपका आदरणीय खुर्शीद खैराड़ी साहब, सादर !

Comment by Hari Prakash Dubey on January 15, 2015 at 8:55pm

इस लघुकथा पर आपके समर्थन के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय अदरणीय लक्ष्मण धामी जी !

Comment by Hari Prakash Dubey on January 15, 2015 at 8:45pm

आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया सर उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु  आपका हार्दिक आभार ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 15, 2015 at 8:05pm

आदरणीया प्रतिभा त्रिपाठी जी इस लघुकथा  पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 15, 2015 at 3:54pm

रोजमर्या की साधारण सी बात को विषय बनाकर, बहुत सुन्दरता से साझा किया आपने आदरणीय हरिप्रकाश जी. आपकी लघुकथा सामयिक फिल्म आलोचना को कुछ अलग ही आयाम दे रही है. बहुत-२ बधाई 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 14, 2015 at 9:33pm

आदरणीय सौरभ सर , रचना पर आपका आशीर्वाद मिला , मेरे लिए  सौभाग्य  की बात है !’डोम्बिवली सिण्ड्रोम पर अपने बहुत ही महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराई , मैं तो बिलकुल अनभिज्ञ था , आपका बहुत बहुत आभार !सादर !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2015 at 9:24pm

बहुत ही सजग लघुकथा हुई है, आदरणीय हरि प्रकाशभाईजी.
हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

इस लघु के बाबत एक बात साझा करूँ -
डोम्बिवली सेण्ट्रल लाइन में मुम्बई की छाया में जीता हुआ एक उपनगर है. अस्सी-नब्बे के दशक में तब ’डोम्बिवली-सिन्ड्रोम’ बड़ा फेमस था. डोम्बिवली के मध्यवर्गीय / निम्न मध्यवर्गीय परिवारों के लड़के-लड़कियाँ नौकरी-व्यवसाय के लिए पूरी तरह से मुम्बई पर ही आश्रित थे. रोज़ाना एक सुबह लोकल से मुम्बई से निकलना और देर रात गये वापस आना उनकी दैनिकचर्या थी.
उस महानगर की चकाचौंध में रमे होने के बावज़ूद वे आर्थिक रूप से इस लायक नहीं हुआ करते थे कि महानगर के बाज़ार से संचालित होते. सो, बातें तो हर कन्ज्यूमेबल आइटम की नीर-क्षीर करते हुए करते. लेकिन ’खरीदा क्या ?’ पूछे जाने पर ’ना-ना, मेरे फ्रेण्ड ने लिया है ना !’ का उत्तर दे कर झेंप मिटाते हुए खींसे निपोर देते. उनकी आवाज़ से निस्सृत होती इसी विवशता को मुम्बई वालों ने ’डोम्बिवली सिण्ड्रोम’ का नाम दिया हुआ था और उन युवाओं पर वे कटाक्ष करते.
आपकी इस लघु कथा को पढ़ कर मेरे मन में वो सारा कुछ एकबारग़ी घूम गया.

Comment by Hari Prakash Dubey on January 14, 2015 at 8:44pm

हा....हा..... हा आमिर हैं न! अमीर तो होंगे ही....सही बात , रचना पर आपकी उपस्तिथि के लिए हार्दिक आभार आदरणीय जवाहर जी  , मेरी निजी राय मैं आज भी मुझे "ओ माय गॉड" तकनीकी रूप से ज्यादा बेहतर लगती है !

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 14, 2015 at 8:33pm

वास्तव में यह फिल्म हलचल मचा गयी जबकि ओ माय गॉड ज्यादा नहीं कमा पाई थी, आमिर हैं न! अमीर तो होंगे ही 

अच्छा कटाक्ष ...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब जब मलाई लिख दिया गया है यानी किसी प्रोसेस से अलगाव तो हुआ ही है न..दूध…"
14 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना पर आपने अच्छे दोहे रचे हैं. उस पर बहुत…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, महाकुंभ विषयक दोहों की सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. एक बात…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"वाह वाह वाह !  आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महान व्यक्तित्व को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"जय हो..  हार्दिक धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  जिन परिस्थितियों में पहलगाम में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया, वह…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी left a comment for Shabla Arora
"आपका स्वागत है , आदरणीया Shabla jee"
Monday
Shabla Arora updated their profile
Monday
Shabla Arora is now a member of Open Books Online
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सौरभ जी  आपकी नेक सलाह का शुक्रिया । आपके वक्तव्य से फिर यही निचोड़ निकला कि सरना दोषी ।…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"शुभातिशुभ..  अगले आयोजन की प्रतीक्षा में.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"वाह, साधु-साधु ऐसी मुखर परिचर्चा वर्षों बाद किसी आयोजन में संभव हो पायी है, आदरणीय. ऐसी परिचर्चाएँ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service