प्यार का समन्दर हो .....
किसको लिखता
और क्या लिखता
भीड़ थी अपनों की
पर कहीं अपनापन न था
एक दूसरे को देखकर
बस मुस्कुरा भर देना
हाथों से हाथ मिला लेना ही
शायद अपनेपन की सीमा थी
खोखले रिश्ते
बस पल भर के लिए खिल जाते हैं
इन रिश्तों की दिल में
तड़प नहीं होती
यादों का बवण्डर नहीं होता
बस एक खालीपन होता है
न मिलने की चाह होती है
न बिछुड़ने का ग़म होता है
इसलिए ट्रेन छूटने के बाद
मैंने उसे देने के लिए
हाथ में दबाया हुआ प्रेम पत्र
जो मेरी हथेली के पसीने से
गीला हो गया था
जिसके अक्षर
मिलन से पहले ही
पिघल गए थे
उस निष्ठुर पटरी पर
बिना किसी कसक के
मैंने हवा में उड़ जाने के लिए
गिरा दिया
फिर खुद ही
अपने हाल पे मुस्कुरा दिया
और चल दिया
एक सच्चे
रिश्ते की तलाश में
जिसमे अपनेपन की मिठास हो
मिलने की चाह हो
बिछुड़ने का दर्द हो
यादों का बवण्डर हो
प्यार का समन्दर हो
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय pratibha tripathi जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी रचना पर आपकी गहन प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
मिलने की चाह हो,बिछुड़ने का दर्द हो
यादों का बवण्डर हो,प्यार का समन्दर हो
ऐसे रिश्ते की तलाश जहां अपनापन हो - बहुत सुंदर बाह्व्पूर्ण रचना के लिए बधाई श्री सुशिल सरना जी
लाजवाब रचना , सभी की तलाश यही है , एक सच्चा रिश्ता , जीवित , मशीनी नहीं । बधाइयाँ आ. सुशील भाई ।
आदरणीय Er. Ganesh Jee "Bagi" जी रचना पर आपकी गहन प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का तहे दिल से शुक्रिया।
बहुत सुन्दर, रिश्तों को गहराई से देखने का प्रयास रचना को विशिष्ट बना गया, आदरणीय सरना साहब इस अभिव्यक्ति पर ढेरों बधाई.
आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी रचना पर आपकी मधुर अभिव्यक्ति का हार्दिक आभार। आदरणीय हमारी रचना उस पानी के समान है जो जिस प्याले में जाती है उसी का रंग अपना लेती है। मेरी बात छोड़िये और गौर से सोचिये इसमें कहीं न कहीं आप भी शामिल नज़र आयेंगे। हा हा हा। .... कृपया अन्यथा न लेवें ये आपसी मज़ाक है। वैसे आपकी इस स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक हार्दिक आभार.
आदरणीय डॉ विजय शंकर जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर आपकी आत्मीय अभिव्यक्ति के लिए आपका हार्दिक आभार।
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