For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़म मौत के .......(एक रचना )

ग़म मौत के ......(.एक रचना )

ग़म  मौत  के  कहाँ  जिन्दगी भर साथ चलते हैं
चराग़  भी  कुछ  देर  ही किसी के लिए जलते हैं


इतने  अपनों  में  कोई  अपना नज़र नहीं आता
अब  तो  रिश्ते  स्वार्थ  की कड़वाहट में पलते हैं


दोस्ती  राहों  की  अब राह में ही दम तोड़ देती है
अब किसी के लिए कहाँ दर्द आंसुओं में ढलते हैं


मिट  जाते  हैं  गीली  रेत पे मुहब्बत भरे निशाँ
फिर  भी  क्यूँ  लोग  गीली रेत पे साथ चलते हैं


सच  को छुपा कर लोग क्यूँ आडम्बर में जीते हैं
दम तो बिना पैरहन के ही ज़िस्म से निकलते हैं


सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 419

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on January 20, 2015 at 2:50pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। आपका सुझाव सर माथे। कोशिश करूंगा कि भविष्य में युग्मों को किसी बहर  में ढाल कर ग़ज़ल का रूप दूँ।  पुनः आपके हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 18, 2015 at 8:14am

आदरणीय सुशील सरना भाई , बहुत सुन्दर , बहुत बढिया विचार आपने रचना मे पिरोया है । आपकी रचना ग़ज़ल के  बहुत ही करीब है , आप चाहें तो इसे किसी एक बहर मे ढाल सकते हैं । रचना के लिये हार्दिक बधाई ।

Comment by Sushil Sarna on January 17, 2015 at 7:57pm

आदरणीय  डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी रचना पर आपकी स्नेहाशीष का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 16, 2015 at 3:28pm

वाह सरना जी

क्या उम्दा गजल कही है i

ग़म  मौत  के  कहाँ  जिन्दगी भर साथ चलते हैं
चराग़  भी  कुछ  देर  ही किसी के लिए जलते हैं

दोस्ती  राहों  की  अब राह में ही दम तोड़ देती है
अब किसी के लिए कहाँ दर्द आंसुओं में ढलते-------- सादर i

Comment by Sushil Sarna on January 16, 2015 at 9:32am

आदरणीय   umesh katara      जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on January 16, 2015 at 9:32am

आदरणीय  Hari Prakash Dubey     जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on January 16, 2015 at 9:32am

आदरणीय    मिथिलेश वामनकर    जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by umesh katara on January 15, 2015 at 7:48pm

सुन्दर रचना वाह सर वाह

Comment by Hari Prakash Dubey on January 15, 2015 at 7:42pm

ग़म  मौत  के  कहाँ  जिन्दगी भर साथ चलते हैं

चराग़  भी  कुछ  देर  ही किसी के लिए जलते हैं………शानदार, आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक बधाई आपको ! सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 15, 2015 at 7:40pm

आदरणीय सुशील सरना सर जी सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service