ग़म मौत के ......(.एक रचना )
ग़म मौत के कहाँ जिन्दगी भर साथ चलते हैं
चराग़ भी कुछ देर ही किसी के लिए जलते हैं
इतने अपनों में कोई अपना नज़र नहीं आता
अब तो रिश्ते स्वार्थ की कड़वाहट में पलते हैं
दोस्ती राहों की अब राह में ही दम तोड़ देती है
अब किसी के लिए कहाँ दर्द आंसुओं में ढलते हैं
मिट जाते हैं गीली रेत पे मुहब्बत भरे निशाँ
फिर भी क्यूँ लोग गीली रेत पे साथ चलते हैं
सच को छुपा कर लोग क्यूँ आडम्बर में जीते हैं
दम तो बिना पैरहन के ही ज़िस्म से निकलते हैं
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। आपका सुझाव सर माथे। कोशिश करूंगा कि भविष्य में युग्मों को किसी बहर में ढाल कर ग़ज़ल का रूप दूँ। पुनः आपके हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील सरना भाई , बहुत सुन्दर , बहुत बढिया विचार आपने रचना मे पिरोया है । आपकी रचना ग़ज़ल के बहुत ही करीब है , आप चाहें तो इसे किसी एक बहर मे ढाल सकते हैं । रचना के लिये हार्दिक बधाई ।
आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी रचना पर आपकी स्नेहाशीष का तहे दिल से शुक्रिया।
वाह सरना जी
क्या उम्दा गजल कही है i
ग़म मौत के कहाँ जिन्दगी भर साथ चलते हैं
चराग़ भी कुछ देर ही किसी के लिए जलते हैं
दोस्ती राहों की अब राह में ही दम तोड़ देती है
अब किसी के लिए कहाँ दर्द आंसुओं में ढलते-------- सादर i
आदरणीय umesh katara जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी युग्मों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
सुन्दर रचना वाह सर वाह
ग़म मौत के कहाँ जिन्दगी भर साथ चलते हैं
चराग़ भी कुछ देर ही किसी के लिए जलते हैं………शानदार, आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक बधाई आपको ! सादर
आदरणीय सुशील सरना सर जी सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई...
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