२१२२ २१२२२ २१२
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हो गया है सत्य भी मुँहचौर क्या
या दिया हमने ही उसको कौर क्या
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कालिखें पगपग बिछी हैं निर्धनी
तब बताओ भाग्य होगा गौर क्या
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मार डालेगा मनुजता को अभी
जाति धर्मो का उठा यह झौर क्या
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हैं परेशाँ आप भी मेरी तरह
धूल पग की हो गयी सिरमौर क्या
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फूँक दे यूँ शूल जिनके घाव को
मायने रखता है उनको धौर क्या
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प्यार माथे का पसीना पोछ दे
राहतें इससे बड़ी हों और क्या
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आज इस पथ पाँव कल को फिर कहीं
इक ‘मुसाफिर‘ आदमी का ठौर क्या
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय भाई दिनेश जी , गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आदरणीय भाई गिरिराज जी गजल की प्रशंसा के लिए बहुत बहुत आभार । आप और भाई गणेश जी आपनी जगह बिलकुल सही हैं । मुंहचौर शब्द का प्रयोग प्रायः देखने को नहीं मिलता । इस अप्रचलित शब्द का प्रयोग यहां संकोची स्वभाव के लिए किया गया है । हिंदी भार्गव शब्दकोषानुसार भी इसका अर्थ यही है । जबकि मुंहचोर शब्द का प्रयोग जहां तक मेरा ज्ञान है, गलत कार्य कर मुंहछिपाते फिरने से और मुंहजोर का अर्थ दबंग बोल्ड प्रक्रिति से है । शेष आप सभी प्रबुद्धजनों से मार्गदर्शन की आकांक्षा है । शुभ ... शुभ.......
आदरणीय भाई गणेश जी, आपकी उपस्थिति से गजल का मान बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद । आपने सही फरमाया मुंहचैर शब्द का प्रयोग प्रायः देखने को नहीं मिलता । इस अप्रचलित शब्द ( मुंहचौर ) का प्रयोग यहां संकोची स्वभाव के लिए किया गया है । हिंदी भार्गव शब्दकोषानुसार भी इसका अर्थ यही है । जबकि मुंहचोर शब्द का प्रयोग जहां तक मेरा ज्ञान है, गलत कार्य कर मुंह छिपाते फिरने से है । शेष आप प्रबुद्धजनों से मार्गदर्शन की आकांक्षा है ।
आदरणीय भाई अजय जी उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
आदरणीय भाई मिथिलेश जी गजल पर शेर दर शेर प्रतिक्रिया देने के लिए हार्दिक धन्यवाद । स्नेह बनाए रखें....
आदरणीय भाई विजय शंकर जी आपका स्नेह पाकर धन्य हुआ .... आभार ....
आदरणीय भाई हरिप्रकाश जी , प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आदरणीय भाई आशुतोष जी, नये काफिये को स्वीकार्यता प्रदान करने के लिए आभार । इस बह्र को २१२२ २१२२ २२१२ पढंे़ ।
आदरणीय भाई गोपाल नारायन जी गजल का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन के लिए कोटि कोटि धन्यवाद ।
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