कर नहीं सकता मैं करतब क्या करूं
हो गई ताज़ा ग़ज़ल अब क्या करूं
कोई न पूछे तो लब ख़ामोश हैं
ओर जो कोई पूछ ले तब क्या करूं
तेरी ना एहली पे जब उठठे सवाल
मेरे कहने का है मतलब क्या करूं
फिर जिहालत का अंधेरा छा गया
तू ही बतलादे मिरे रब क्या करूं
अपनी मरज़ी से तो जी सकता नहीं
मुझको लिखकर दीजिये कब क्या करूं
आख़िरत में सुर्ख़रू करना मुझे
लेके इस दुनिया का मनसब क्या करू
.
समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
सुंदर प्रस्तुति
आदरणीय समर कबीर जी क्षमा कीजियेगा मैं उर्दू का तालिबईल्म नहीं हूँ और केवल देवनागिरी में लिखता हूँ इसलिए ऐसी गुस्ताखी कर बैठा. \कोई ना पूछे तो लब ख़ामोश हें\ और \तेरी ना एहली पे जब उठठे सवाल\ में आपका ना का प्रयोग सही है तथा \ओर जो कोई पूछ ले तब क्या करूं\ मिसरे में जो भी भर्ती का नहीं है कोई को 1 +1 =2 मान लिया. अपनी सलाह वापस लेता हूँ यदि आपको प्रतिक्रिया पसंद नहीं आई हो तो आप डिलीट भी कर सकते है. एक बार फिर गुस्ताखी की मुआफी चाहता हूँ. बहुत अच्छी ग़ज़ल है. मानता हूँ. नौसिखिया हूँ और आपकी किसी ग़ज़ल से पहली बार गुज़रा हूँ इसलिए हिमाकत हो गई. अब आप मंच पर उपलब्ध है तो बहुत कुछ सीखने मिलेगा. सादर.
आदरणीय समर कबीर जी,सुन्दर प्रस्तुति ... , बाकी आदरणीय मिथिलेश जी की बात पर गौर करीयेगा....
अपनी मरज़ी से तो जी सकता नहीं
मुझको लिखकर दीजिये कब क्या करूं.....बधाई !
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