For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कर नहीं सकता मैं करतब क्या करूँ

हो गई ताज़ा ग़ज़ल अब क्या करुँ

कोई ना पूछे तो लब ख़ामोश हैं

और जो कोई पूछ ले तब क्या करुँ

तेरी ना अहली पे जब उठठे सवाल

मेरे कहने का है मतलब क्या करुँ

फिर जिहालत का अँधेरा छा गया

तू ही बतलादे मेंरे रब क्या करुँ

अपनी मर्ज़ी से तो जी सकता नहीं

मुझको लिखकर दीजिये कब क्या करुँ

आख़िरत में सुर्ख़रू करना मुझे

लेके इस दुनिया का मनसब क्या करुँ

.

समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1466

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 22, 2015 at 8:58pm

आदरणीय, एक अच्छी गज़ल के लिये आपको बधाइयाँ ।

में को मै और हें को हैं कर लीजियेगा , ये भाषा की अज्ञानता नहीं है , केवल टाइपिंग की गलती  है । गज़ल का मज़ा कम कर ही है टाइपिंग की गलती ।

Comment by दिनेश कुमार on January 22, 2015 at 6:04pm
क्यों कि मेरी जानकारी बहुत ही कम है इसलिए मुझे बार बार पूछना पड़ता है ताकि मैं अपने doubt दूर कर सकूँ। उम्मीद है आप बुरा नहीं मानेंगे। Doubt सिर्फ 'ना' के वजन को लेकर है। मैं जानता नहीं कि इसका वजन कब कब २ लेना है
Comment by Samar kabeer on January 22, 2015 at 5:48pm
माफी चाहता हूँ दिनेश कुमार जी पहले मिसरे की तक़तीअ भी वही है" फ़ाईलातुन फ़ाईलातुन फ़ाईलुन",इस सम्बन्ध में मैने जो कमेन्ट मिथिलेश जी को किया है और मिथिलेश जी ने उसके जवाब में जो कमेंट मुझे किया है उसे पढने का कष्ट करें शायद आपकी सन्तुष्टि हो जाए?
Comment by दिनेश कुमार on January 22, 2015 at 2:41pm
लेकिन समर साहब, मैंने तो दूसरे शे'र के पहले मिसरे के बारे में पूछा था
Comment by Samar kabeer on January 22, 2015 at 2:33pm
प्रतिभा त्रिपाठी जी बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Samar kabeer on January 22, 2015 at 2:30pm
सोमेश कुमार जी, शुक्रिया
Comment by Samar kabeer on January 22, 2015 at 2:27pm
भाई दिनेश कुमार जी,आदाब ग़ज़ल़ पसंद करने के लिए शुक्रिया,रही बात ग़ज़ल के दूसरे नम्बर के शेर की तो शेर का दूसरा मिसरा जिस पर आपको एतराज़ है में दूसरे अन्दाज़ में भी कह सकता था ,इस मिसरे को "उर जो कोई पूछ ले तब क्या करू"इस तरह पढने से मिसरा ,फ़ाईलातुन फ़ाईलातुन फ़ाईलुन की तक़तीअ पर पूरा उतरेगा,शुक्रिया
Comment by somesh kumar on January 22, 2015 at 11:21am

सुंदर प्रस्तुति 

Comment by दिनेश कुमार on January 22, 2015 at 7:46am
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है साहब। वाह ...!! क्यों कि मुझे बह्र,वज्न आदि की बहुत ही सीमित जानकारी है,इसलिए दूसरे शे'र के पहले मिसरे की तक्तिअ नहीं कर पाया। अगर समर साहब आप थोड़ा हिन्ट दें तो मुझे फायदा होगा।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 22, 2015 at 1:26am

आदरणीय  समर कबीर जी क्षमा कीजियेगा मैं उर्दू का तालिबईल्म नहीं हूँ और केवल देवनागिरी में लिखता हूँ इसलिए ऐसी गुस्ताखी कर बैठा. \कोई ना पूछे तो लब ख़ामोश हें\ और \तेरी ना एहली पे जब उठठे सवाल\ में आपका ना का प्रयोग सही है तथा  \ओर जो कोई पूछ ले तब क्या करूं\ मिसरे में जो भी भर्ती का नहीं है कोई को 1 +1 =2 मान लिया. अपनी सलाह वापस लेता हूँ यदि आपको प्रतिक्रिया पसंद नहीं आई हो तो आप डिलीट भी कर सकते है. एक बार फिर गुस्ताखी की मुआफी चाहता हूँ. बहुत अच्छी ग़ज़ल है. मानता हूँ. नौसिखिया हूँ और आपकी किसी ग़ज़ल से पहली बार गुज़रा हूँ इसलिए हिमाकत हो गई. अब आप मंच पर उपलब्ध है तो बहुत कुछ सीखने मिलेगा. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"देखकर ज़ुल्म कुछ हुआ तो नहीं हूँ मैं ज़िंदा भी मर गया तो नहीं ढूंढ लेता है रंज ओ ग़म के सबब दिल मेरा…"
4 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"सादर अभिवादन"
17 minutes ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"स्वागतम"
20 minutes ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
22 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service