बच्ची को मोटरसाइकिल पर बैठा छोड़ कस्टमर दुकान के अंदर आया और बोला,
"भाई साहब जरा बिटिया के लिए टॉफी और बिस्किट देना"
अभी मैं बिस्किट निकालने के लिए मुड़ा ही था कि बाहर धड़ाम की आवाज के साथ मोटरसाइकिल गिर गयी और बच्ची भी। कुछ लोगो ने बच्ची को उठाया और उसके हाथ व पैर में लगी चोटों को देखने लगे । इधर कस्टमर भी दौड़ कर बाहर भागा और जल्दी से मोटरसाईकिल उठाया तथा टूटी हुई हेड लाइट को देखते ही चटाक की आवाज ।
बच्ची के गाल पर उँगलियों की छाप व आँखों में आँसू स्पष्ट दिख रहे थे ।
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : फेस वैल्यू
Comment
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन जी, लघुकथा पर आपका आना इसके होने को सार्थक करता है, सराहना और प्रोत्साहन हेतु हृदय से आभार.
लघुकथा पर आपका आशीर्वाद सदैव प्रोत्साहन देता है, बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लडिवाला जी.
प्रिय सोमेश जी, सराहना युक्त आपकी प्रतिक्रिया मुग्धकारी है, बहुत बहुत आभार.
आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी, लघुकथा पर आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार.
आदरणीय गणेश भाईजी
गलती नहीं थी, फिर भी, दे दी उसे सज़ा।
उस प्यारी सी बेटी को, चखा दिया मज़ा॥
बेटी होने के गम को, भुला नहीं पाता।
बेटा अगर होता तो, सीने से लगाता॥
लघु कथा की हार्दिक बधाई
भौतिकवाद का बहुत बढ़िया उद्धारण
आदरणीया प्रतिभा जी, आप द्वारा दी गयी विस्तृत व समीक्षात्मक टिप्पणी पढ़ मन मुग्ध है, हृदय से आभार प्रेषित करता हूँ स्वीकार करें.
आदरणीय विनय कुमार जी, आपकी सराहना सर माथे पर, बहुत बहुत आभार.
आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपकी प्रतिक्रया सदैव नव लेखन को प्रोत्साहित कर जाया करती है, बहुत बहुत आभार.
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