प्रिय ! इस जीवन का तुम बसंत हो ....
तुम ही आदि हो तुम ही अनन्त हो
प्रिय ! इस जीवन का तुम बसंत हो
नयन आँगन का तुम मधुमास हो
रक्ताभ अधरों की तुम ही प्यास हो
तुम ही सुधि हो मेरे मधु क्षणों की
मेरे एकांत का तुम ही अवसाद हो
नयन पनघट का मिलन पंथ हो
तुम ही आदि हो तुम ही अनन्त हो
प्रिय ! इस जीवन का तुम बसंत हो
इस जीवन की तुम हो परिभाषा
मिलन- ऋतु की तुम अभिलाषा
भ्रमर आसक्ति का मधु पुष्प हो
बिना दरस दृग तुम बिन प्यासा
इस प्रेम विरह का तुम्ही अंत हो
तुम ही आदि हो तुम ही अनन्त हो
प्रिय ! इस जीवन का तुम बसंत हो
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया। आभार विलम्ब के लिए क्षमा।
आदरणीय Er. Ganesh Jee "Bagi" जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया। आभार विलम्ब के लिए क्षमा। आपका आग्रह पर मैं अवश्य कार्य करूंगा। आपके आग्रह ने रचना का जो गौरव बढ़ाया है उसके लिए आपका हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील भाई , बहुत सुन्दर गीत रचना हुई है , वाह ! आपको दिली बधाइयाँ ।
बहुत ही खुबसूरत गीत, एक अंतरा और लिखिए आदरणीय आनंद आ जायेगा, इस खुबसूरत अभिव्यक्ति पर बहुत बहुत बधाई.
आदरणीय Satyanarayan Sing जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
प्रिय ! इस जीवन का तुम बसंत हो....
प्रेम रस में पगी सुन्दर , अति सुन्दर गीत हेतु ढेरों बधाई स्वीकार करें. आ. सुशील सरना जी
आदरणीय सुशील सरना सर .........तुम ही आदि हो तुम ही अनन्त हो
प्रिय ! इस जीवन का तुम बसंत हो........सम्पूर्ण रचना ही सुन्दर है , हार्दिक बधाई ! सादर
प्रिय ! इस जीवन का तुम बसंत हो...वाह! बहुत सुंदर. बधाई आदरणीय शरना जी
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