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ग़ज़ल -- कहानियों में हक़ीक़त नहीं हुआ करती

जो दिल कहे वो ज़रूरत नहीं हुआ करती
कहानियों में हक़ीक़त नहीं हुआ करती

तुम्हें गुरेज़ नहीं है यही सबब तो नहीं
बिना फरेब सियासत नहीं हुआ करती

ज़बान दे के पलटना उन्हें मुबारक हो
मैं ख़ुश हूँ, मुझसे तिज़ारत नहीं हुआ करती

मैं कैसे झूठ को सच और सच को झूठ कहूँ
कि एक दिन में ये आदत नहीं हुआ करती

जो चंद पैसों में ईमान बेच देते हैं
उन्हें किसी से रिफ़ाक़त नहीं हुआ करती

वो नामचीन हुए कल जो तिफ्ले-मकतब थे
कभी फ़ुज़ूल मशक़्क़त नहीं हुआ करती

'दिनेश' तू ये ज़माने का ढंग अपना ले
शरीफ़ लोगों की इज़्ज़त नहीं हुआ करती


--- दिनेश कुमार २८/०१/२०१५

( मौलिक व अप्रकाशित )

अरकान -- १२१२ ११२२ १२१२

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 29, 2015 at 12:12pm

कभी अनाड़ी था वो आज नामी शायर है
कभी फ़ुज़ूल मशक़्क़त नहीं हुआ करती----------------vah vah   ati sundar i

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 29, 2015 at 11:48am

आ० दिनेश भाई बेहतरीन ग़ज़ल हुई है.हार्दिक बधाई स्वीकारें .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 29, 2015 at 12:49am

वाह वाह दिनेश भाई बेहतरीन ग़ज़ल हुई है. और ये तीन अशआर तो उम्दा हुए है 

ज़बान दे के पलटना तुम्हें मुबारक हो
मैं ख़ुश हूँ, मुझसे तिज़ारत नहीं हुआ करती

मैं कैसे झूठ को सच और सच को झूठ कहूँ
कि एक दिन में ये आदत नहीं हुआ करती

कभी अनाड़ी था वो आज नामी शायर है
कभी फ़ुज़ूल मशक़्क़त नहीं हुआ करती

दिल से दाद कुबूल कीजिये ....


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 28, 2015 at 9:55pm

//कभी अनाड़ी था वो आज नामी शायर है
कभी फ़ुज़ूल मशक़्क़त नहीं हुआ करती//

वाह वाह, बहुत ही खुबसूरत शेर निकाला है, आदरणीय दिनेश जी ग़ज़ल अच्छी लगी जिसके लिए बहुत बहुत बधाई, अनुरोध है कि वजन अपडेट करा दें. 

Comment by Sushil Sarna on January 28, 2015 at 7:56pm

कहानियों में हक़ीक़त नहीं हुआ करती

बिना फरेब सियासत नहीं हुआ करती

ज़बान दे के पलटना तुम्हें मुबारक हो

मैं ख़ुश हूँ, मुझसे तिज़ारत नहीं हुआ करती

वाह शानदार शानदार और शानदार ग़ज़ल बनी है आदरणीय .... हार्दिक बधाई

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