212 212 212 212
मेरे हँसने हँसाने पे शक़ है उसे
बेव़जह मुस्कुराने पे शक़ है उसे
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अलव़िदा कह गया जाता-जाता मग़र
आज़तक भूलपाने पे शक़ है उसे
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हर किसी से करूँ ज़िक्र मैं यार का
पर व़फायें निभाने पे शक़ है उसे
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कब से तनहाई दुल्हन बनी है मेरी
पर तुझे भूल जाने पे शक़ है उसे
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आँसुओं से समन्दर भी मैंने भरा
मेरे आँसू बहाने पे शक़ है उसे
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
अलव़िदा कह गया जाता-जाता मग़र
आज़तक भूलपाने पे शक़ है उसे
आदरणीय उमेश जी ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन |
आदरणीय , अच्छी गज़ल कही , बधाई स्वीकारें ।
उमेश जी , मुझे गज़ल का मक्ता बहुत प्यारा लगा
आँसुओं से समन्दर भी मैंने भरा
मेरे आँसू बहाने पे शक़ है उसे - बधाई कबूल करें
कब से तनहाई दुल्हन बनी है मेरी
पर तुझे भूल जाने पे शक़ है उसे waah bhaee waah
बहुत शुक्रिया श्री Shyam Mathpal जी
बहुत शुक्रिया श्री Er. Ganesh Jee "Bagi"जी
बहुत शुक्रिया श्री मिथिलेश वामनकर जी
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