मेरे सबसे प्रिय रचनाकार
कभी प्रत्यक्ष मिला नहीं आपसे
सपना है मेरा ,
आपसे मिलना , बातें करना
घंटों ,
किसी झील के किनारे
सूनसान में
आपकी हर रचनायें
गढती जाती है
मेरे अन्दर आपको
बनती जाती है
आपकी छवि ,
कभी धुंधली , कभी चमक दार , साफ साफ
क़ैद है मेरे दिलो दिमाग़ में
आपकी रचनाओं की सारी खूबियों के साथ
आपकी एक बहुत प्यारी छवि
क्या आप सच में वैसे ही हैं
जैसी आपकी रचनायें बनातीं हैं आपको
मन डरता भी है
कभी कभी
सोचने लगता है
आपकी रचनायें आपके दिल का अनुवाद है या नहीं ?
कहीं दिमागी गुणा भाग ही न हो
शब्दों से अर्थ कमाने की
एक नितांत बाहरी कोशिश मात्र
मन डरता है , मिलने से
ख़्वाब के टूट जाने की आशंकाओं से
क्या आप सच में वैसे ही हैं
जैसी आपकी रचनायें ? ॥
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
क्या आप सच में वैसे ही हैं
जैसी आपकी रचनायें बनातीं हैं आपको
मन डरता भी है
कभी कभी
सोचने लगता है
आपकी रचनायें आपके दिल का अनुवाद है या नहीं ?
कहीं दिमागी गुणा भाग ही न हो
शब्दों से अर्थ कमाने की
एक नितांत बाहरी कोशिश मात्र
एक पाठक मन के कितने बेतहरीन सवाल उठाए आपने |एक पाठक बनकर ये सवाल हर लेखक के मन भी अवश्य उठता है |ऐसा यकीन है |पर सच्च है लेखक एक शब्द-शिल्पी होता है |गुणा-भाग करके वही दिखाता है जो वो दिखाना चाहता है |बधाई इस बेहतरीन विचार-मंथन पे |
आदरणीय विजय भाई , रचना के अनुमोदन और सराहना के लिये आपका दिली शुक्रिया ।
आदरणीयमिथिलेश भाई , सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये बहुत आभार ।
आदरणीय विरेन्दर वीर भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका शुक्रिया ।
आदरणीय बागी भाई जी , आपकी सराहना करती प्रतिक्रिया ने लेखन कर्म सार्थक कर दिया । आपका हृदय से आभारी हूँ ।
आदरणीय हरि प्रकाश भाई , आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
आदरनीय नादिर खान भाई , बहुत दिनों बाद आपके दर्शन हुये , बहुत अच्छा लगा । आपकी सराहना के लिये आपका अभार ।
कविता सीधे दिल में उतर गई. खो गया हूँ इस रचना के सौन्दर्य में. सीधे सादे, सरल और सहज शब्दों में मार्मिक कविता. नमन गिरिराज सर.
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